Shaheed Diwas: ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा दे हंसते हुए फांसी पर चढ़ गए थे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु

Shaheed Diwas 2018: देश के लिए छोटी सी ही उम्र में सूली पर चढ़ जाना बहुत ही हिम्मत का काम होता है और यह हिम्मत का काम स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवाराम राजगुरु ने करके दिखाया था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु देश की आजादी की खातिर हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए थे। अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने वाले इन तीनों नौजवानों को 23 मार्च, 1931 में लाहौर जेल में फांसी दे दी गई थी। अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए इन लोगों ने अंग्रेजों का हर प्रकार का जुल्म झेला। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान ने न केवल देश को प्रेरित किया बल्कि बॉलीवुड में भी उन्हें लेकर कई फिल्में बनाई गईं। इन फिल्मों में दर्शाया गया कि कैसे इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा मनवाया था।

भगत सिंह अंग्रेजों के लिए कहते थे कि वे मुझे मार सकते हैं लेकिन मेरे विचारों को नहीं, वे मेरे शरीर को नष्ट कर सकते हैं लेकिन मेरे जुनून को नष्ट करने की उनकी क्षमता नहीं है। 1919 में जलियावाला बाघ में हुए नरसंहार के कुछ ही घंटे बाद भगत सिंह ने वहां का दौरा किया था। यह देखकर भगत सिंह काफी दुखी हुए थे। उसी दिन उन्होंने सोच लिया था कि वे अपने देश को आजाद कराएंगे और अगर इसके लिए उन्हें अपनी जान भी देनी पड़ी तो वे पीछे नहीं हटेंगे।

1928 में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन के खिलाफ भगत सिंह और उनके साथियों ने प्रदर्शन किया था। इसी दौरान अंग्रेजी हुकुमत ने लाठी चार्ज के आदेश दे दिए जिसमें लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। लाला की मृत्यु के बाद भगत सिंह काफी आक्रोषित हुए और लाठीचार्ज का निर्देश देने वाले अधिकारी को मौत के घाट उतारने की योजना बनाई। चंद्र शेखर आजाद के नेतृत्व में भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर बदला लेने की योजना बनाई। राजगुरु की एक ही गोली से उन्होंने एक पुलिस अधिकारी को चित कर दिया। भगत सिंह ने गोली चलाते हुए कहा था यह लाला के लिए है लेकिन उन्होंने गलती से किसी अन्य अधिकारी को मौत के घाट उतार दिया था।

इसके बाद उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया। उन्होंने कहा था कि हमें इस आवाज को इतना तेज करना है जो कि कोई बहरा भी सुन सके। 8 अप्रैल, 1929 में भगत सिंह ने अपने एक साथी बीके दत्त के साथ मिलकर एसेंबली में बम फोड़ दिया और कहा कि यह लाखों भारतीयों की आवाज है। ध्यान से सुनो वे क्या कह रहे हैं, ‘अभी भारत छोड़ दो’। इस मामले में भगत सिंह को सजा सुनाकर जेल भेज दिया गया।

इसी बीच सुखदेव और राजगुरु भी कुछ क्रांतिकारी काम कर जेल पहुंच गए। जेल में रहने के बावजूद इन क्रांतिकारियों का हौसला कम नहीं हुआ और जेल के अंदर से ही उन्होंने भूखे-प्यासे रहकर अपनी बातें मनवाना शुरू कर दिया था। इसके बाद इन तीनों नौजवानों को फांसी की सजा सुना दी गई। जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी हुई तो वे केवल 23,23,24 क्रमश: उम्र के थे। 23 मार्च, 1931 को तीनों हंसते-हंसते इंकलाब जिंदाबाद का नारा देते हुए फांसी पर चढ़ गए।

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