सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की महात्मा गांधी की हत्या की जांच फिर से करने की माँग, कहा- मिल चुकी है हत्यारे को फाँसी
सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गांधी की हत्या की जांच फिर से कराने के संबंध में दायर याचिका को बुधवार को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति एसए बोबड़े और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव के पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे खारिज कर दिया। याचिका अभिनव भारत की ओर से मुंबई के पंकज फड़नीस ने दायर की थी। शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर छह मार्च को सुनवाई पूरी कर ली थी। अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए स्पष्ट किया कि वह भावनाओं से प्रभावित नहीं होगी बल्कि याचिका पर फैसला करते समय कानूनी दलीलों पर भरोसा करेगी। याचिका दायर करने वाले फड़नीस ने इसे पूरे मामले पर पर्दा डालने की इतिहास की सबसे बड़ी घटना होने का दावा किया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मुकदमे पर फिर से सुनवाई कराने के लिए दायर याचिका अकादमिक शोध पर अधारित है। यह सालों पहले हुए किसी मामले को फिर से खोलने का आधार नहीं बन सकती। न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। पीठ ने कहा, ‘अब इसे (यह घटना) बहुत देर हो चुकी है। हम इसे फिर से खोलने या इसे ठीक करने नहीं जा रहे हैं। इस मामले को लेकर बहुत भावुक नहीं हों। हम कानूनी तर्कों के अनुसार चलेंगे न कि भावनाओं के अनुसार। हमने आपको सुना है और हम आदेश पारित करेंगे। आप कहते हैं कि लोगों को यह जानने का अधिकार है कि क्या हुआ था। परंतु ऐसा लगता है कि लोगों को इस बारे में पहले से ही मालूम है। आप लोगों के मन में संदेह पैदा कर रहे हैं। हकीकत तो यह है कि जिन लोगों ने हत्या की थी उनकी पहचान हो चुकी है। उन्हें फांसी दी जा चुकी है।’
याचिकाकर्ता ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे की दोषसिद्धि के मामले में विभिन्न अदालतों की तीन बुलेट के कथानक पर भरोसा करने पर भी सवाल उठाए थे। याचिका में कहा गया था कि इस तथ्य की जांच होनी चाहिए कि क्या वहां चौथी बुलेट भी थी जो गोडसे के अलावा किसी अन्य ने दागी थी। शीर्ष अदालत ने इस मामले में वरिष्ठ वकील अमरेंद्र शरण को न्याय मित्र नियुक्त किया था। अमरेंद्र शरण ने कहा कि महात्मा गांधी हत्याकांड की फिर से सुनवाई की जरूरत नहीं है क्योंकि इस मामले में फैसला अंतिम रूप प्राप्त कर चुका है। इस घटना के लिए दोषी व्यक्ति अब जीवित नहीं है।
महात्मा गांधी की 30 जनवरी, 1948 को राजधानी में हिंदू राष्ट्रवाद के हिमायती दक्षिणपंथी नाथूराम गोडसे ने काफी नजदीक से गोली मार कर हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड में गोडसे और आप्टे को 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गई थी। वहीं सबूतों के अभाव में सावरकर को संदेह का लाभ दे दिया गया था।
फड़नीस ने अपनी याचिका खारिज करने के बंबई हाई कोर्ट के छह जून, 2016 के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।