सुप्रीम कोर्ट के जज ने की जजों की नियुक्ति में सरकार के हस्तक्षेप पर पूर्ण पीठ द्वारा चर्चा करने की माँग
मुख्य न्यायाधीश की कार्यशैली के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर आवाज उठाने वाले सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज जस्टिस जस्ती चेलामेश्वर ने एक बार फिर से CJI जस्टिस दीपक मिश्रा को पत्र लिखा है। उन्होंने हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति में सरकार के हस्तक्षेप पर फुल कोर्ट (पूर्ण पीठ) द्वारा चर्चा करने की जरूरत बताई है। जस्टिस चेलामेश्वर ने पिछले सप्ताह पत्र लिखा था। सुप्रीम कोर्ट के जज ने 21 मार्च को पत्र पर हस्ताक्षर किया था। उन्होंने पांच पृष्ठों की चिट्ठी की प्रति शीर्ष अदालत के 22 अन्य जजों को भी भेजा था। मुख्य न्यायाधीश ने इस पर अभी तक जवाब नहीं दिया है। 12 जनवरी को जस्टिस चेलामेश्वर के अलावा जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने प्रेस कांफ्रेंस कर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए थे।
सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों ने चारों वरिष्ठतम जजों की इस बात को लेकर कड़ी आलोचना की थी कि ऐसा करने से पहले उन्होंने अन्य जजों को विश्वास में नहीं लिया था। इस बार जस्टिस चेलामेश्वर ऐसे किसी विवाद से बचने के लिए पत्र की प्रति अन्य जजों को भी प्रेषित किया है। बता दें कि जस्टिस चेलामेश्वर ने ऐसे समय में सीजेआई को पत्र लिखा है, जब विपक्षी पार्टियां मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चला रही हैं।
सरकार पर लगाए गंभीर आरोप: जस्टिस चेलामेश्वर ने अपने पत्र में सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने लिखा कि हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों पर सरकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती है। सरकार को जिसका नाम असुविधाजनक लगता है उसे या तो नजरअंदाज कर दिया जाता है या फिर टाल दिया जाता है। ऐसे में न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होती है, लिहाजा मौजूदा परिस्थिति पर फुल कोर्ट द्वारा विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। इसमें अदालत के अधिकांश जज शामिल होते हैं।
न्यायपालिका के कामकाज से जुड़े सार्वजनिक महत्व के मसलों पर चर्चा करने के लिए मुख्य न्यायाधीश द्वारा फुल कोर्ट मीटिंग बुलाई जाती है। जस्टिस चेलामेश्वर ने अपने पत्र में फर्स्ट जजेज केस, 1981 का भी उल्लेख किया है। उन्होंने इसका हवाला देते हुए मौजूदा स्थिति की तुलना की है। बता दें कि उस वक्त न्यायपालिका में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप बढ़ने पर सुप्रीम कोर्ट को कदम उठाना पड़ा था। उस वक्त भी जजों की नियुक्ति में हस्तक्षेप को लेकर गंभीर सवाल उठे थे।
कर्नाटक के सत्र न्यायाधीश की प्रोन्नति पर विवाद: यह पूरा मामला कर्नाटक के जिला एवं सत्र न्यायाधीश पी. कृष्णा भट से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने जज भट की हाई कोर्ट में नियुक्ति को अगस्त, 2016 में मंजूरी दी थी। लेकिन, एक मुख्य दीवानी जज ने भट पर गंभीर आरोप लगाए थे, जिसे कर्नाटक हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश गलत और मनगढ़ंत करार दिया था। कोलेजियम ने अप्रैल, 2017 में एक बार फिर से जज भट को हाई कोर्ट में प्रोन्नत करने के अपने फैसले का दोहराया था। कानून मंत्रालय को भी इससे अवगत कराया गया था।
सेकेंड जजेज केस में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम द्वारा दोबारा सिफारिश करने पर उस जज की प्रोन्नति बाध्यकारी हो जाती है। इसके बावजूद जज भट का मामला अभी तक अटका हुआ है। कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने CJI को पत्र लिखकर बताया कि कानून मंत्रालय सीधे उनको पत्र लिख रहा है। माना जाता है कि जस्टिस चेलामेश्वर ने इस मामले के सामने आने के बाद मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है।