मथुरा के मंदिरों में चढ़ाए फूलों से बनेगी अगरबत्ती और इत्र
मथुरा और वृंदावन के मंदिरों के फूलों के कचरे से अब अगरबत्ती व इत्र बनाया जाएगा। इस सिलसिले में वृंदावन की विधवाओं को अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में रोजाना हजारों क्विंटल फूल चढ़ाए जाते हैं और बाद में इन्हें यमुना में बहा दिया जाता था। फूलों के कचरे से अगरबत्ती व इत्र बनाने से इसे यमुना में नहीं बहाया जाएगा। इससे यमुना में प्रदूषण भी नहीं फैलेगा। जानकारी के मुताबिक इस्तेमाल किए गए फूलों के कचरे से इत्र और अगरबत्ती बनाने के विचार का जन्म आगरा विश्वविद्यालय में हुआ। कनौज के ‘फ्रेगरेंस एंड फ्लेवर सेंटरह्ण की मदद से आगरा के ह्य सेठ पदम चंद मैनेजमेंट इंटीट्यूट’ में पिछले साल फूलों से गुलाब जल बनाने का डिस्टिलेशन प्लांट स्थापित किया गया था।
कामयाबी मिलने पर वृंदावन की विधवाओं को अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। यह प्रशिक्षण आज भी जारी है। कन्नौज के ह्यफ्रेगरेंस एंड फ्लेवर सेंटरह्ण के निदेशक विनय शुक्ल का कहना है कि मंदिरों ,बारातघरों में प्रयोग किए फूलों से अगरबत्ती, धूपबत्ती, इत्र आदि बनाया जा सकता है। इस कुटीर उद्योग से लाखों को रोजगार मिलेगा और यमुना का प्रदूषण भी रुकेगा। योगीराज कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और क्रीड़ा स्थली वृंदावन को मंदिरों का शहर कहा जाता है।
इन दोनों स्थानों पर पांच हजार से ज्यादा मंदिर हैं। यूं तो साल भर भगवान के चरणों में फूल चढ़ाए जाते हैं लेकिन गर्मियों के दिनों में फूल की मांग कई गुना बढ़ जाती है। अप्रैल से फूलबंगले सजने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो जुलाई तक चलता है। फूल बंगला सजाने वाले व्यापारी के मुताबिक मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, गोवर्धन, नंदगांव और महावन में हजारों क्विंटल फूलों की खपत हर रोज होती है। यह फूल दिल्ली से भी खरीदा जाता है।