लखनऊ सेंट्रल Review: जेल के असली कैदियों से प्रेरित है फरहान अख्तर की फिल्म

फरहान अख्तर की फिल्म लखनऊ सेंट्रल 15 सितंबर को रिलीज हो रही है। इसके जरिए रंजीत तिवारी डायरेक्शन के क्षेत्र में डेब्यू कर रहे हैं। यह फिल्म सपनों, नुकसान और जिंदगी में कैसे जीवित रहा जाए उसकी कहानी को बयां करती है। फिल्म की कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है। कहानी की बात करें तो फिल्म पांच कैदियों के इर्द-गिर्द घूमती है जो आजाद होने का सपना देखते हैं। ट्रेलर में फरहान अख्तर कहते हैं- बंदे कैद होते हैं सपने नहीं, शहर छोटे होते हैं सपने नहीं। फिल्म में फरहान उत्तर प्रदेश में रहने वाले एक लड़के किशन का किरदार निभा रहे हैं जो गायक बनना चाहता है।

किशन की इच्छा है कि वो एक बैंड बनाए। लेकिन इसी बीच उसकी जिदंगी में ऐसा कुछ घटता है जिसकी वजह से उसपर खून का इल्जाम लगता है और वो लखनऊ सेंट्रल जेल पहुंच जाता है। अपने ट्रायल के दौरान उसे पता चलता है कि मुख्यमंत्री ने स्वतत्रंता दिवस के मौके पर इंटर जेल प्रतियोगिता का आयोजन किया है। रवि किशन ने मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई है जो अखिलेश यादव से प्रेरित है। इसके बाद किशन एनजीओ कर्मी (डायना पेंटी) की मदद से एक बैंड बनाने का निर्णय लेता है। जबकि उसका मुख्य मकसद जेल से भागने का होता है। किशन के साथी उसे भागने के लिए मास्टर प्लान इस उम्मीद से बताते हैं कि उनका दोस्त अपने सपनों को पूरा कर सकेगा।

किशन के प्लान पर उस समय पानी फिर जाता है जब जेलर (रोनित रॉय) को उसके प्लान की भनक मिल जाती है। क्या किशन अपने प्लान में सफल हो पाएगा? क्या वो खुद को बेगुनाह साबित कर पाएगा? इन सवालों के जवाब के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। फिल्म की कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है इसी वजह से आप इससे खुद को कनेक्ट कर सकते हैं। जेल के कैदियों की यात्रा आपको हमेशा याद रहेगी।
फिल्म में दीपक डोबरियाल, राजेश शर्मा, इनाम-उल-हक और गिप्पी ग्रेवाल मुख्य भूमिकाओं में नजर आएंगे। फिल्म की कहानी आपको हंसाने के साथ ही रुलाएगी भी। इसमें बॉलीवुड के वो सारे मसाले मौजूद हों जिसकी वजह से यह मस्ट वॉच बनती है। हालांकि सेकेंड हाफ में कहीं- कहीं पर फिल्म आपको थोड़ी बोर्यत वाली लगेगी। लेकिन म्यूजिक उस कमी को भर देगा।

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