थम नहीं रही भाजपा के दलित सांसदों की नाराजगी
दो अप्रैल के भारत बंद के दौरान हुई हिंसक घटनाओं में बड़े पैमाने पर दलितों की गिरफ्तारी के बाद भाजपा के दलित नेताओं का असंतोष बढ़ गया है। पार्टी के दलित नेता बेकसूरों की गिरफ्तारी के कारण दलितों के बीच जाने से घबरा रहे हैं। अब तक सूबे के चार दलित सांसद असंतोष जता चुके हैं।
बहराइच की सांसद सावित्री बाई फुले, इटावा के सांसद अशोक दोहरे और राबर्ट्स गंज के सांसद छोटे लाल खरवार के बाद शनिवार को बिजनौर के सांसद डाक्टर यशवंत ने भी अपनी पार्टी और सरकार पर दलितों की अनदेखी करने का आरोप लगा दिया। इस बीच भाजपा के ज्यादातर दलित नेता अभी दबी जुबान से ही बेकसूरों की गिरफ्तारी का आरोप लगा रहे हैं। पर शनिवार को मेरठ में उत्तर प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने खुलेआम आरोप लगाया कि पुलिस ने बंद के दिन अपनी नाकामी पर पर्दा डालने के लिए बड़े पैमाने पर बेकसूरों को हिंसा की वारदातों में नामजद कर उनकी गिरफ्तारी की है।
शनिवार को पुलिस ने अमन-चैन कायम करने के मकसद से मेरठ में फ्लैग मार्च निकाला था। वाजपेयी उस मार्च के बीच में ही सड़क पर अड़ गए और पुलिस कप्तान व जिला कलेक्टर से कहा कि बेकसूरों को रिहा नहीं किया गया तो वे आंदोलन करेंगे। उन्होंने ऐसे कई उदाहरण भी दिए जिनसे पता चलता है कि पुलिस ने हिंसा के लिए बेकसूरों को भी दोषी बना दिया। मसलन, वैश्य जाति के फैक्टरी कर्मचारी पवन गुप्ता को पवन दलित बना कर जेल भेज दिया। जबकि वह आंदोलन के कारण फैक्टरी की छुट्टी हो जाने के कारण अपने घर जा रहा था। उसने कंकरखेड़ा थाने की पुलिस को अपना सही परिचय और सड़क पर चलने की वजह भी बताई लेकिन पुलिस ने एक नहीं सुनी। अब वह जेल में है।
ज्यादती की चपेट में आने से दलित पुलिस वाले भी नहीं बच पाए। मेरठ के शोभापुर गांव का सोनू शामली में सिपाही है। दो अप्रैल को वह शामली में ही ड्यूटी पर था लेकिन मेरठ पुलिस की नजर में अब वह भी हिंसा का नामजद आरोपी है। पीएल शर्मा रोड पर फोटोस्टेट की दुकान चलाने वाला नौजवान सोनकर अपनी दुकान बंद कर रहा था कि पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर दंगाई बना दिया। एक बाल्मीकि नौजवान 18 अप्रैल को होने वाली अपनी शादी के कार्ड बांटने घर से निकला था। पुलिस के हत्थे चढ़ गया और अब गंभीर आपराधिक धाराओं के तहत जेल में बंद है।
दरअसल पुलिस ने दो अप्रैल की घटनाओं के लिए हजारों दलितों के खिलाफ मुकदमे कायम किए हैं। दो सौ से ज्यादा को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है। बसपा की मेरठ की मेयर सुनीता वर्मा ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनके पूर्व विधायक पति योगेश वर्मा को बैठक के बहाने घर से बुला कर न केवल प्रताड़ित किया बल्कि संगीन धाराओं में जेल भी भेज दिया। खुद योगेश वर्मा का कहना है कि वे आंदोलनकारियों से शांति बनाए रखने की अपील कर रहे थे। भाजपा की राज्यसभा सदस्य कांता कर्दम, पूर्व विधायक गोपाल काली, विधायक दिनेश खटीक और चरण सिंह लिसाड़ी जैसे तमाम नेता बेकसूरों को फंसाने के आरोप तो जरूर लगा रहे हैं पर पुलिस के खिलाफ आंदोलन करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। उधर सपा के जिला अध्यक्ष राजपाल सिंह ने भी सूबे की भाजपा सरकार पर पुलिस के जरिए दलितों को आतंकित करने का आरोप लगाया है।
उनका कहना है कि एक तरफ तो प्रदेश की भाजपा पांच साल पहले मुजफ्फरनगर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के आरोपी भाजपा नेताओं के खिलाफ मुकदमे वापस ले रही है तो दूसरी तरफ बेकसूर दलितों को झूठे मामलों में गिरफ्तार किया जा रहा है। जबकि सारी नाकामी पुलिस प्रशासन की थी। बंद के मद्देनजर पुलिस पहले से चौकस रहती तो हिंसा की कोई घटना हो ही नहीं पाती।