EPF पर 8.55 फीसदी ब्याज देने पर वित्त मंत्रालय का श्रम मंत्रालय से सवाल
वित्त मंत्रालय ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के 2017 और 2018 के लिए कम ब्याज दर देने को लेकर सवाल किए हैं। हाल ही कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने साल 2017-18 के लिए EPF पर 8.55 फीसदी की दर से देने का फैसला किया है, जिसके बाद वित्त मंत्रालय ने सवाल खड़ा किया है। वित्त मंत्रालय का कहना है कि EPF ने 8.55 फीसदी की घोषणा करते समय अपने पास अधिक रकम क्यों नहीं रखी। गौरतलब है कि पिछले साल भी EPF ने वित्त मंत्रालय से इसी मामले को लेकर 2015-16 और 2016-17 सवाल किए थे।
लगातार दो साल से वित्त मंत्रालय EPFO के ब्याज दर प्रस्ताव को खारिज करते हुए भी यही तर्क दिया था और EPFO की बात को दरकिनार किया था। लिहाजा यह तीसरा साल है जब EPF ने वित्त मंत्रालय के फैसले का विरोध किया है।
वित्त मंत्रालय को कम ब्याज देने के बाद EPFO के केंद्रीय न्यास बोर्ड ने श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार की अध्यक्षता में 21 फरवरी को हुई बैठक में 2017-18 के लिए 8.55 फीसदी ब्याज दर की घोषणा की थी, जो पांच साल में सबसे कम है। इससे ईपीएफओ के पास 5.86 अरब रुपए का अधिशेष रह जाएगा। ब्याज दर पर केंद्रीय न्यास बोर्ड के निर्णय को वित्त मंत्रालय से मंजूरी की जरूरत होती है, इसके बाद उसे सदस्यों के पीएफ खाते में डाला जाता है।
आपको बता दें कि वित्त मंत्रालय द्वारा EPFO के फैसले का विरोध करने के पीछे आरक्षित कोष बनाने की जरूरत पर भी बल देना है ताकि ईपीएफओ को निवेश पर होने वाले नुकसान की स्थिति में सरकार किसी तरह के बोझ में न हों।
वहीं दूसरी ओर EPFO के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने अपने बयान में कहा कि, ‘EPFO के गठन के बाद से कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि नुकसान की भरपाई करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव सौंपा गया हो। EPFO के अधिकारी का कहना है कि केंद्र सरकार से संंपर्क करने का सवाल ही नहीं उठता है क्योंकि ईपीएफ ऐंड एमपी अधिनियम के तहत कोष के प्रबंधन की जिम्मेदारी केंद्रीय बोर्ड के न्यासी की होती है।’ पिछले महीने ईपीएफओ न्यासी की बैठक के बाद गंगवार ने कहा था, कि तमाम विचार विमर्श के बाद हमने ब्याज दर 8.55 फीसदी रखने का निर्णय किया। हमारे पास समुचित अधिशेष है। हमें उम्मीद है कि वित्त मंत्रालय इसे मंजूरी दे देगा।’ लेकिन ऐसा नहीं हुआ और स्थिति अब भी वही है।