कठुआ-उन्नाव गैंगरेप: पहले खामोशी में गुम और अब शोर में दबा इंसाफ का मुद्दा, क्या आएगी वह एक आवाज?
कठुआ में क्या हुआ? मासूम बच्ची का गैंगरेप, पत्थर मार कर हत्या, गुनाह छिपाने के लिए लीपापोती, राजनीति, सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश…। इसका शोर भले आज है, पर बात चार महीने पुरानी है। अब तक सब चुप रहे। बोल रहे थे तो सिर्फ बच्ची के परिवार वाले और मुट्ठी भर उसके शुभचिंंतक। बाकी सब खामोश! जिन्हें बोलना चाहिए था और जिनका बोलना जरूरी था, वह भी। क्यों? क्योंकि पाप के पीछे वे ही थे, जिन पर बच्ची को बचाने और उसे इंसाफ दिलाने के लिए लिए आगे आना चाहिए था। लेकिन खामोशी पापियों की करतूत नहीं दबा सकी। तब सब बोलने लगे। कुछ तो मन में आए उबाल के चलते और कई औपचारिकता या मजबूरी में भी बोलने लगे। उन्हें लगा कि अब नहीं बोले तो महंगा पड़ेगा। नतीजा हुआ कि शोर मच गया। पर मूल मुद्दा जस का तस रहा। बच्ची को इंसाफ का मुद्दा। पहले खामोशी में गुम था, इस बार शोर में दब गया।
करने वालों का जोर बोलने पर: मोदी सरकार में मंत्री वीके सिंंह और मेनका गांधी को भी लगा कि अब बोलना जरूरी है। दोनों बोल गए। राहुल गांधी ने तो एक्शन भी दिखाया। आधी रात कैंडल मार्च निकाल कर। वीके सिंह ने कहा- We have failed Ashifa as humans. But she will not be denied justice. उधर, जम्मू-कश्मीर सरकार के मंत्री ने कहा- पीडीपी और बीजेपी दोनों जुर्म में भागीदार हो गईं और कश्मीरियों को अपने खून से इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। मेनका गांधी ने वीडियो मैसेज जारी कर बताया कि वह बेहद आहत हैं और 12 साल से कम उम्र की बच्ची के बलात्कारी को फांसी की सजा दिए जाने के लिए कानून में बदलाव की पहल करेंगी।
बोलने के लिए बोलना: 2014 में यूपी के बदायूं में जब दो बहनों का रेप के बाद कत्ल हुआ था, तब भी मेनका गांधी आहत हुई थीं। उन्होंने कहा था- वह जब तक हालात सुधारने के लिए कुछ ठोस कदम नहीं उठा लेंगी, तब तक बदायूं नहीं जाएंगी। उन्होंने कहा था कि वह सुनिश्चित करेंगी कि बदायूं जैसी घटनाएं और न हों। उन्होंने यूपी पुलिस की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाया था। बता दें कि तब यूपी में सपा की सरकार थी। अब कश्मीर में ‘बदायूं’ हुआ है। वहां भाजपा सरकार में साझीदार है और घटना में पुलिस अफसर भी शामिल हैं। पुलिस पर यह तक आरोप है कि उसने लड़की को मारने जा रहे साथी से कहा- रुको, अभी मुझे रेप करना है। बच्ची के परिवार को गुमराह करने और जांच में लीपापोती के लिए घूस लेने का भी आरोप चार्जशीट में लगाया गया है। वैसे, यूपी के उन्नाव में गैंगरेप और पीड़िता के पिता की हत्या का आरोपी भी मेनका गांधी की पार्टी का ही विधायक और उनका भाई है।
जिन्हें बोलना चाहिए, वह चुप हैं: जाहिर है, बोलने भर से इंसाफ नहीं हो जाता। फिर भी, बोलने का बहुत महत्व है। यह इंसाफ की आस तो जगाता ही है। पर, महत्व किसके बोलने का है? रेप के आरोपियों को बचाने के लिए हिंदू एकता मंच बनाने वालों का? या जम्मू बार एसोसिएशन के प्रमुख का, जो कह रहे हैं कि हमारी नहीं सुनी तो अभी तिरंगा थामे युवा बम और एके 47 पकड़ लेंगे? नहीं। महत्व वीके सिंह और मेनका गांधी के बोलने का भी नहीं है। जो इधर इंसाफ का वादा करते हैं और उधर, उनके लोग ही इंसाफ का गला घोंटते नजर आते हैं या फिर हर बार घटना होने पर ऐसा नहीं होने देने का वादा करते हैं। इनको चुप कराने के लिए बोलना जरूरी है। इंसाफ होता दिखे, ऐसा एक्शन लेने के लिए बोलना जरूरी है। आरोपी के पक्ष में खड़ा होने वाली भीड़ और इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए बोलना जरूरी है। इन सबके लिए कौन बोल सकता है ? जब कहीं से आस नहीं दिख रही हो, तब प्रधानमंत्री पर उम्मीद टिक जाती है। उम्मीद की जाती है कि वह बोलें- सब चुप रहें, मैं बोल रहा हूं। कोई आरोपी को न बचाएगा, न निष्पक्ष जांच रोकेगा, न राजनीति चमकाएगा। क्या वह बोल सकते हैं? बोलेंगे? इंसाफ बस इस सवाल के जवाब में ही छिपा है।
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उन्नाव गैंगरेप के आरोपी को माननीय विधायक जी कहकर संबोधित करते उत्तर प्रदेश के एडीजी (कानून-व्यवस्था)