क्या देवगौड़ा 30 दिन बाद बन सकते हैं किंगमेकर
कर्नाटक विधान सभा चुनाव में अब एक महीने से भी कम समय रह गया है। ऐसे में सभी दलों ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। ओपिनियन पोल सर्वे के मुताबिक कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा के आसार हैं। हालांकि, कांग्रेस को 90 से 101 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरते हुए दिखाया गया है लेकिन बहुमत के आंकड़े से वो दूर रहेगी। मुख्य विपक्षी बीजेपी 76 से 86 सीट के साथ बहुमत के आंकड़े से कोसों दूर हो सकती है और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस 34 से 43 सीट लेकर तीसरे नंबर पर रह सकती है। अगर 15 मई को चुनाव नतीजों के दिन ऐसी ही सूरत रही तब एच डी देवगौड़ा का सियासी भाव आसमान में चढ़ जाएगा क्योंकि इनके सहयोग के बिना न ता कांग्रेस और न ही बीजेपी सरकार बना पाएगी।
कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा का लंबा इतिहास रहा है। देवगौड़ा की पार्टी दोनों ही दलों यानी कांग्रेस और बीजेपी के साथ पहले सरकार बना चुकी है। इसलिए फिर से किसी भी दल के साथ जाने में उसे कोई गुरेज नहीं होगा। ये अलग बात है कि जेडीएस में इसके लिए भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि पिता एच डी देवगौड़ा का झुकाव जहां कांग्रेस की तरफ हो सकता है, वहीं बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी का झुकाव बीजेपी की तरफ। बता दें कि साल 2004 में देवगौड़ा ने कांग्रेस को साथ देकर धरम सिंह की सरकार बनवाई थी लेकिन दो साल बाद 2006 में बेटे कुमारस्वामी ने कांग्रेस से तलाक लेकर बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी। हालांकि, साल भर बाद ही उनकी सरकार गिर गई।
देवगौड़ा की छवि सेक्यूलर रही है। इसलिए वो फिर से सेक्यूलर छवि के सहारे चुनावों में बड़ी जीत की कोशिश में जुटे हैं। वैसे देवगौड़ा वोक्कालिंगा समुदाय के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। इस समुदाय की आबादी राज्य में 12 फीसदी है। इस बार चुनावों में उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती से चुनाव पूर्व गठबंधन किया है। राज्य में दलितों की आबादी 20 फीसदी है। देवगौड़ा को उम्मीद है कि देश में मौजूदा एंटी दलित माहौल से उनके गठबंधन को फायदा मिल सकता है। इसके अलावा अपनी सेक्युलर छवि के सहारे वो अल्पसंख्यक वोटों का जुगाड़ करने में भी बिजी हैं।
इस राह में उनकी मुश्किल यह है कि एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी भी मुस्लिम वोट में सेंध लगाने कर्नाटक में कैम्प कर रहे है, जबकि दलितों को एकजुट कर वोट में ट्रांसफर करने वाली मायावती दोस्ती और गठबंधन कर बेहद शांत तरीके से वापस चली गईं। ऐसे में देवगौड़ा के लिए 1994 का प्रदर्शन (तब जेडीएस ने 224 में 113 सीटें जीती थीं) दोहराने पर न केवल संशय है बल्कि अपनी साख बचाने का भी संकट है। फिलहाल, देवगौड़ा करो या मरो की स्थिति में पहुंच गए हैं।