असीमानंद को दो मामलों में बरी किया गया, अभी भी चल रहा है समझौता एक्‍सप्रेस का मुकदमा

नबकुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की एक अदालत ने सोमवार को 2007 के मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में दोषमुक्त कर दिया। असीमानंद अब सिर्फ 2007 के समझौता एक्सप्रेस ट्रेन विस्फोट मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। इससे पहले वह 2007 के अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में दोषमुक्त करार दिए गए थे। गुजरात निवासी और वनवासी कल्याण आश्रम के प्रमुख असीमानंद पूर्व में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े थे। करीब 70 साल के असीमानंद हरियाणा के पानीपत के निकट समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट के मामले में वर्तमान में जमानत पर हैं। एनआईए की विशेष अदालत ने सोमवार को हैदराबाद में स्वामी असीमानंद व दक्षिणपंथी हिंदू शाखा के चार सदस्यों को मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में दोषमुक्त कर दिया। अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए कोई भी आरोप साबित नहीं हुए।

प्रसिद्ध चारमीनार के पास मक्का मस्जिद में 18 मई, 2017 को जुमे की नमाज के दौरान हुए विस्फोट में नौ लोगों की मौत हो गई थी। विस्फोट के बाद मस्जिद के बाहर जमा भीड़ पर गोलीबारी में पांच लोगों की मौत हो गई थी। राजस्थान के जयपुर में एनआईए की एक अन्य अदालत ने अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में आठ मार्च, 2017 को असीमानंद व छह अन्य को साक्ष्यों के अभाव में दोषमुक्त कर दिया था। लेकिन इस मामले में तीन लोगों को दोषी करार दिया गया था। इसमें भवेश पटेल, देवेंद्र गुप्ता व सुनील जोशी शामिल थे। जोशी की 2007 में हत्या हो गई थी।अजमेर के ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की 13वीं शताब्दी की दरगाह में 11 अक्टूबर, 2007 को हुए विस्फोट में तीन लोगों की मौत हो गई थी।

नई दिल्ली व पाकिस्तान के लाहौर के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी, 2007 को हुए विस्फोट में 68 लोगों की मौत हो गई थी, इसमें ज्यादातर पाकिस्तानी थे। पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस मामले में असीमानंद को 2014 में जमानत दे दी थी। इन मामलों के अलावा असीमानंद का नाम 2006 व 2008 के मालेगांव विस्फोट में सामने आया था।

महाराष्ट्र के मालेगांव में आठ सितंबर, 2006 को एक मस्जिद में हुए विस्फोट सहित तीन स्थानों पर विस्फोट हुए थे, जिनमें 37 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद 29 सितंबर, 2008 को हुए दो बम विस्फोटों में सात लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि, एनआईए ने 2013 की अपने आरोप-पत्र में 2006 के मालेगांव विस्फोट मामले में असीमानंद का कोई संबंध नहीं पाने पर मामले से नाम बाहर कर दिया था। असीमानंद ने 2010 में कथित तौर पर कबूल किया था कि वह व दूसरे दक्षिणपंथी कार्यकर्ता ‘मुस्लिमों के आतंकी कार्यो’ के खिलाफ पूरे देश में धर्मस्थलों पर हुए विस्फोटों में शामिल थे। बाद में उन्होंने अपना बयान बदल लिया और कहा कि उन पर यातना व दबाब डालकर गलत बयान दिलाया गया था।

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