झारखंड निकाय चुनाव: बीजेपी की ऐतिहासिक जीत, 34 में से 20 पर खिला कमल
झारखंड में पांच नगर निगमों, 16 नगर परिषदों और 14 नगर पंचायतों के लिए हुए चुनाव के नतीजे घोषित हो गए हैं। इस चुनाव में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया है। बीजेपी ने 34 में से 20 निकायों में फतह हासिल की है। झारखंड की बीजेपी सरकार में सहयोगी एजेएसयू को भी दो निकायों में जीत मिली है। कांग्रेस को पांच, जेएमएम को तीन, जेवीएम और आरजेडी को एक-एक निकाय में जीत से संतोष करना पड़ा है। निर्दलीय प्रत्याशियों को दो सीटों पर जीत मिली हैं। झारखंड में इन 34 सीटों के लिए 16 अप्रैल को वोट डाले गए थे। इसके अलावा झारखंड की सभी 5 नगर निगमों के मेयर के साथ डेप्युटी मेयर पदों को भी भाजपा ने अपने नाम कर लिया है। नगर निगम के साथ ही नगर परिषदों में भी बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की है। बता दें कि राज्य के रांची, हजारीबाग, गिरिडीह, आदित्यपुर और मेदिनीनगर में नगर निगम है। राज्य के 16 नगर परिषदों में से 7 के अध्यक्ष पद पर बीजेपी ने कब्जा किया है और एजेएसयू को एक अध्यक्ष पद मिला है। वहीं कांग्रेस को 4, जेएमएम को 2 और निर्दलीय प्रत्याशियों को 2 अध्यक्ष पद हासिल हुए हैं। बता दें कि साल 2013 में हुए निकाय चुनावों के मुकाबले इस बार 2.35 फीसदी अधिक वोटिंग हुई। साल 2013 में जहां 63.17 फीसदी वोटिंग हुई थी, वहीं इस बार 65.52 फीसदी मतदाताओं ने वोटिंग की।
इस जीत से गदगद सूबे के सीएम रघुबर दास ने झारखण्ड की जनता को बधाई देते हुए धन्यवाद कहा है। सीएम ने इस जीत को ऐतिहासिक बताते हुए इसे विकास और जनता के विश्वास की जीत करार दिया। रघुवर दास ने ट्वीट कर लिखा- ‘ये जीत प्रधानमंत्री की नीतियों और बीजेपी अध्यक्ष के मार्गदर्शन की जीत है। ये विजय राज्य सरकार के विकास कार्यों पर मुहर है। आज फिर ये साबित हुआ है कि जनता आत्मसम्मान ,भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन और विकास चाहती है ।’
वहीं अपनी करारी हार पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा- हम जनता के फैसले का सम्मान करते हैं और हम इस बात पर विमर्श करेंगें कि हम आखिर वोटर्स तक अपनी बात क्यों नहीं पहुंचा पाए। वैसे इस चुनाव में सरकारी मशीनरी का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया है। सरकार ने चुनाव को प्रभावित करने का काम किया है।
बता दें कि इन निकाय चुनावों को रघुवर दास की सरकार के लिए सेमी फाइनल माना जा रहा था। वार्ड पार्षद को छोड़कर ऊपर के सभी पदों के चुनाव में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने अपने उम्मीदवारों को पार्टी सिंबल दिया था। यह पहली बार था, जब मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव पार्टी आधार पर हुए।