सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस: अदालत में बयान से पलट गए दो गवाह
सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में जेल में बंद तुलसीराम प्रजापति के दो साथियों ने पहले दावा किया था कि सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर से पहले दिसंबर 2006 में उन्हें पुलिस से धमकियां मिली थीं। उन्होंने शुक्रवार को कोर्ट को बताया कि उन्होंने कभी भी हंसी—मजाक से ज्यादा सोहराबुद्दीन के साथ बातचीत नहीं की थी। दोनों गवाहों ने जिनकी पहचान छुपाई गई थी, अपने बयानों में इस बात से मुकर गए कि उन्होंने कभी भी सीबीआई के सामने अपना किसी तरह का कोई बयान दर्ज करवाया था। अभियोजन पक्ष के वकील ने उन्हें प्रतिद्रोही करार दिया। इन दोनों गवाहों के बयानों के साथ ही इस केस के कुल 76 गवाहों में से मुकरने वाले गवाहों की संख्या 52 हो गई है।
बता दें कि सोहराबुद्दीन शेख का साथी तुलसीराम प्रजापति, उसके एनकाउंटर के बाद, दिसंबर 2005 से ही उदयपुर जेल में बंद था। सीबीआई के मुताबिक, जेल में प्रवास के दौरान प्रजापति ने नवंबर 2005 में अपने जेल के साथियों को बताया था कि उससे गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अभय चूड़ास्मा ने चाल से फंसाकर सोहराबुद्दीन के ठिकाने के बारे में जानकारी हासिल की थी। तुलसीराम चूड़ास्मा और सोहराबुद्दीन दोनों के लिए काम किया करता था। चूड़ास्मा को अप्रैल 2015 में सबूतों के अभाव में बरी किया जा चुका है।
2011 में दर्ज हुए थे बयान : सीबीआई ने 2011 में प्रजापति के दो साथियों के बयान रिकॉर्ड किए थे। बयान के मुताबिक प्रजापति ने उन दोनों को बताया था कि,’वरिष्ठ पुलिस अधिकारी चूड़ास्मा और दह्याजी ने उसे कहा था कि वह राजनीतिक दबाव के कारण सोहराबुद्दीन को गिरफ्तार करना चाहते हैं। लेकिन मामला ठंडा होने के बाद उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा। लेकिन सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसरबी को पकड़ने की बजाय उन्होंने उसे झूठे एनकाउंटर में मार दिया। वह सोहराबुद्दीन की गिरफ्तारी का चश्मदीद भी था, लेकिन उस वक्त वह पुलिस की वजह से खौफ में था।’
नहीं दिया सीबीआई को बयान : शुक्रवार को कोर्ट के सामने दर्ज करवाए अपने बयान में पहले गवाह ने कहा कि,’तुलसीराम से सिर्फ हाय-हैलो ही होती थी। मेरा और तुलसी का इतना बोलचाल नहीं था। मुझे उसके साथ किसी भी मुद्दे पर बातचीत का कोई मौका नहीं मिला।’ उसने सीबीआई के तीन पेज के बयान को पहचानने से इंकार कर दिया। गवाह ने बताया कि जब वह दोनों और तुलसीराम, उदयपुर के हामिद लाला के हत्याकाण्ड में सह-अभियुक्त थे, तब दोनों करीब एक साल तक एक ही जेल में बंद रहे थे। उन्हें अलग बैरक में रखा गया और दोनों के बीच कभी-कभी ही बात होती थी। गवाह ने सोहराबुद्दीन को पहचानने से भी इंकार कर दिया।
कभी जेल में नहीं मिली बहन : सीबीआई का दावा था कि ये वही गवाह है जिसने सोहराबुद्दीन को कौसरबी के साथ निकाह करवाने में मदद की थी। दूसरे गवाह ने भी सोहराबुद्दीन को पहचानने से इंकार कर दिया। उसने यह भी कहा कि तुलसीराम और उसके बीच कभी औपचारिक से ज्यादा बातें नहीं हुईं। बता दें कि दोनों को 2009 के हामिद लाला मर्डर केस के सभी आरोपों से बरी किया जा चुका है। सीबीआई का दावा था कि अपने बयान में गवाहों ने पूरी जानकारी उसके साथ साझा की थी। गवाहों की जानकारी का आधार उनकी प्रजापति के साथ हुई बातचीत थी। उन्होंने दावा किया था कि उन दोनों के मित्र ने उनकी पहचान सोहराबुद्दीन से करवाई थी। उनमें से एक ने दावा किया था कि बीते 24 नवंबर 2005 को उसकी बहन उससे मिलने के लिए जेल आई थी। उसने बताया था कि सोहराबुद्दीन को गिरफ्तार किया गया है। इसके दो—तीन बाद उन्होंने अखबारों में पढ़ा कि सोहराबुद्दीन को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया है।’ लेकिन शुक्रवार को गवाह ने अदालत में कहा कि उसकी बहन उससे कभी भी जेल में मिलने के लिए नहीं आई थी।
हर बात से मुकर गए गवाह : इससे पहले बयान में दावा किया गया था कि सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर के कुछ दिन बाद प्रजापति को उदयपुर जेल लाया गया था। प्रजापति ने कथित तौर पर सोहराबुद्दीन के साथ 20 करोड़ रुपये की रंगदारी के लेनदेन वसूलने की बात बताई थी। ये रकम दो बड़े बिजनेसमैन से वसूली गई थी। बाद में उन्हें प्रजापति ने बताया कि उसे गुजरात पुलिस ने धोखा दिया है और सोहराबुद्दीन, कौसरबी की गिरफ्तारी के बारे में कुछ भी बताने पर जान से मारने की धमकी दी थी। शुक्रवार को गवाह इस बात से भी मुकर गए।
तुलसीराम को नहीं मिली धमकी : अपने बयान में आगे गवाहों ने इस बात से भी इंकार कर दिया कि आरोपियों में से एक पुलिस इंस्पेक्टर अब्दुल रहमान ने कैदियों की बैरक में आकर प्रजापति को धमकाया था। उन्होंने इस बात से भी इंकार कर दिया कि प्रजापति के दो साथियों, उसके भतीजे और दोस्त को पुलिस ने दबाव बनाने के लिए फर्जी ड्रग केस में फंसाकर जोधपुर जेल में बंद करवा दिया था। सीबीआई के बयान के मुताबिक दोनों गवाहों ने कहा था कि प्रजापति का भतीजा और दोस्त उदयपुर जेल में बंद थे। उन्होंने बताया था कि उन्हें ड्रग्स रखने के झूठे आरोप में गिरफ्तार किया गया है।’ लेकिन कोर्ट में दोनों गवाहों ने इस बात से पूरी तरह से इंकार कर दिया
लापता हैं कई दूसरे गवाह : दोनों गवाह इस बात से भी मुकर गए कि प्रजापति के पुलिस हिरासत से भाग जाने की बात सुनकर उनके साथी ने कहा था कि ये पुलिस के गेम-प्लान का हिस्सा है और उसके अगले दिन ही उन्होंने सुना कि प्रजापति को एनकाउंटर में मार दिया गया है। इसके बाद, विशेष सरकारी अभियोजक बीपी राजू ने कोर्ट को बताया कि दो अन्य गवाह और प्रजापति के साथ एक सह—अभियुक्त अभियोजन पक्ष के गवाह थे। उनका कोई सुराग नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि दो आरोपी अन्य आपराधिक मामलों में वांछित हैं और उन्हें भेजे गए समन बैरंग वापस लौट आए हैं।