2010 में महाभियोग के खिलाफ थे और आज समर्थन में खड़े हैं कपिल सिब्बल, तब बताया था ‘नौटंकी’
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने के विपक्ष के कदम का नेतृत्व कर रहे हैं। आज विपक्ष में बैठे सिब्बल जब सत्ता में हुआ करते थे, तब जजों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई पर उनके विचार पूरी तरह अलग थे। तब सिब्बल ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा था, ”मुझे लगता है कि अगर राजनेता जजों की किस्मत तय करने लगें तो यह देश के प्रति सबसे बड़ा अपकार होगा।” 2010 में सिब्बल ने इस पूरी प्रक्रिया को ‘असंवैधानिक’ बताया था क्योंकि पार्टियों को सदन में सदस्यों की मौजूदगी सुनिश्चित कराने के लिए व्हिप जारी करना पड़ता।
2010 में कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई थी। उन पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे। प्रस्ताव राज्यसभा से पास हो चुका था और उसपर लोकसभा में मतदान होने वाला था मगर तभी जस्टिस सेन ने खुद ही पद छोड़ दिया। अगर वह ऐसा न करते तो संसद द्वारा महाभियोग के जरिए हटाए जाने वाले पहले जज बन जाते।
बीते शुक्रवार (20 अप्रैल) को कांग्रेस के नेतृत्च में विपक्ष ने भारत के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने का नोटिस दिया था। इस पर 7 पार्टियों के 64 सांसदों ने हस्ताक्षर कर समर्थन दिया था। हालांकि राज्यसभा सभापति व उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सोमवार को नोटिस खारिज कर दिया। अब विपक्षी दलों ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है।
सिब्बल ने 2010 में कहा था, ”अगर आप एक व्हिप जारी करते हैं तो आप एक सदस्य को उसका न्यायिक निर्णय करने से रोकते हैं, क्योंकि अगर आप संसद में महाभियोग प्रक्रिया के दौरान मौजूद हैं तो आप जज हैं।” कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए पहले भी महाभियोग प्रस्ताव का विरोध किया था। 1993 में जब संसद में सुप्रीम कोर्ट जज वी रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू की गई तो कपिल सिब्बल ने ही सदन में उनका बचाव किया। यह महाभियोग प्रस्ताव सदन में गिर गया था।
कांग्रेस ने रविवार को अपील की थी कि प्रधान न्यायाधीश को खुद को न्यायिक प्रशासनिक कार्यो से दूर रखने पर विचार करना चाहिए। कांग्रेस ने कहा कि उन्हें पद से हटाए जाने के लिए नोटिस देने के बाद उनकी तरफ से यह फैसला स्वैच्छिक रूप से आना चाहिए था।