मोदी सरकार ने एक कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए बदल दिए पर्यावरण नियम?
उच्चतम न्यायालय ने पारिस्थितकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों का दायरा 10 किलोमीटर से घटा कर 100 मीटर करने के केंद्र के फैसले पर आश्चर्य जताया है। साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि यह शक्तियों का पूरी तरह से मनमाना इस्तेमाल नजर आता है जो देश में राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों को नष्ट कर सकता है। दादर एवं नागर हवेली वन्यजीव अभयारण्य के 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित एक औद्योगिक इकाई को पर्यावरणीय मंजूरी दिए जाने को चुनौती देने वाले एक मामले में न्यायालय की यह टिप्पणी आई है।
न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायामूर्ति दीपक गुप्ता की सदस्यता वाली एक पीठ ने कहा कि यह बहुत आश्चर्यजनक है कि पर्यावरण मंत्रालय ने पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र का दायरा 10 किलोमीटर से घटा कर 100 मीटर कर दिया है। चूंकि, इस तरह का आदेश देश में राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों को नष्ट करने में सक्षम है, इसलिए हम इस कटौती (क्षेत्र के दायरे में) की वैधता पर छानबीन करना चाहेंगे।
न्यायालय ने कहा कि पहली नजर में हमें ऐसा लगता है कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा यह शक्तियों का पूरी तरह से मनमाना इस्तेमाल है। पीठ ने इस मामले को पर्यावरण मुद्दे से जुड़े अन्य मुद्दों से संबद्ध कर दिया, जिन्हें सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। न्यायालय ने केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल एएनएस नंदकर्णी से पूछा कि क्या सरकार देश के वन्य जीवन, आरक्षित वन, नदियों और अभयारण्यों को नष्ट कर देना चाहती है ।
पीठ ने कहा, ‘‘आप (केंद्र) को हमें इस बिंदु पर सहमत करना होगा कि आप वन्यजीवन, पर्यावरण का संरक्षण किस तरह से करने का इरादा रखते हैं। क्या ‘संरक्षित क्षेत्र’ की अवधारण अब अप्रासंगिक हो गई है?’’ गौरतलब है कि भारतीय वन्य जीव बोर्ड ने 2002 में वन्यजीव संरक्षण रणनीति अपनाई थी जिसके तहत यह कहा गया था कि राष्ट्रीय उद्यान/ वन्यजीव अभयारण्यों के 10 किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाली भूमि को को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत पारिस्थितिकी रूप से नाजुक क्षेत्र (इको फ्रेजाइल जोन) के तहत अधिसूचित किया जाना चाहिए।
हालांकि, साल 2015 से पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने कई अधिसूचनाओं के जरिए बफर जोन का दायरा 10 किलोमीटर से घटा कर 100 मीटर तक कर दिया है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने 2013 में ओखला पक्षी अभयारण्य के 10 किलोमीटर के दायरे में बनाई जा रही 49 आवासीय परियोजनाओं के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी थी । इसने नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई में नाकाम रहने को लेकर नोएडा प्राधिकरण और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की भी खिंचाई की थी।