दलित संत ने कहा- जाति के चलते जो कुछ झेलना पड़ा, मन करता था आत्महत्या कर लूं
हाल के दिनों में संत की उपाधि से नवाजे गए दलित समुदाय के कन्हैया प्रभु ने अपनी पिछली जिंदगी की पीड़ा को साझा किया है। प्रभु कहते हैं कि जाति के चलते उन्हें कई बार इतनी पीड़ा झेलनी पड़ी कि ‘आत्महत्या’ तक करने के विचार मन में आने लगे। टाइम्स ऑफ इंडिया से प्रभु कहते हैं, ‘जब कोई मेरे बारे में बात करता तो जाति का इस्तेमाल करता। ऐसे में मन में आत्महत्या करने के विचार आते थे। एक-दो बार नहीं बल्कि पूरा जीवन इसी तरह की शर्मनाक घटनाओं से भरा हुआ है।’ कन्हैया कुमार कश्यप के रूप में जन्मे प्रभु सात साल की उम्र से ही मजदूरी करते रहे। चूंकि उनके सब्जी विक्रेता पिता की आमदनी से घर का गुजारा और तीन भाई-बहनों की पढ़ाई का खर्च वहन का काफी मुश्किल था। प्रभु कहते हैं, ‘मैं अपने भाग्य के बारे में जानना चाहता था। खुद के और भगवान के अस्तित्व को जानने के लिए मेरा झुकाव अध्यात्मवाद की ओर हुआ। बचपन में मैंने पुरानी आध्यात्मिकता और ज्योतिष से जुड़ी किताबें पढ़ीं। साल 2008 में चंडीगढ़ के ज्योतिष विज्ञान परिषद में दाखिला लिया और ज्तोतिष विद्या में डिग्री प्राप्त की।’ प्रभु के मुताबिक ज्योतिष में पोस्टग्रेजुएट करने के बाद में उनकी जिंदगी में बड़ा बदलाव आया।
प्रभु कहते हैं कि उन्हें तब भी खासा संघर्ष करना पड़ा जब मन मैं वैदिक संस्कृत सीखने का विचार आया। हालांकि बाद में गुरु (जगतगुरु पंचानगिरी) उनके इस फैसले के बचाव में आए। हालांकि उन्होंने उन सभी खबरों के खारिज कर दिया जिसमें देशभर में दलितों पर हो रहे अत्याचार के चलते उन्हें जूना अखाड़ा ने संत की उपाधि से नवाजा है। प्रभु कहते हैं कि उन्होंने सरकार से सरंक्षण मांगने वाला कोई अखाड़ा नहीं देखा है। दलित संत बने प्रभु आगे कहते हैं, ‘आज तक मैं आजमगढ़ में स्थित अपने आश्रम में जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए काम कर रहा था लेकिन अब मैं एक स्कूल खोलने पर विचार कर रहा हूं। जहां बच्चों की मुफ्त में शिक्षा मिल सके। बता दें कि प्रभु को अगले साल कुंभ के दौरान जूना अखाड़ा के पहले दलित ‘महामंडलेश्वर’ की उपाधि से नवाजा जाएगा।