पत्नी जया बच्चन ने बताया कि राजनीति में क्यों नहीं टिक पाए अमिताभ
समाजवादी पार्टी से राज्य सभा सांसद और अभिनेत्री जया बच्चन ने इंडियन एक्सप्रेस के खास कार्यक्रम आइडिया एक्सचेंज में कहा कि उनके पति और बॉलीवुड स्टार अमिताभ बच्चन का राजनीति में प्रवेश करना एक भावुक फैसला था। उन्होंने कहा कि सभी कलाकार भावुक होते हैं, वैसे ही अमित जी भी भावुक थे और पारिवारिक मित्रता की वजह से कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे लेकिन बहुत जल्दी उन्होंने राजनीति से तौबा कर ली क्योंकि वो तत्कालीन राजनीतिक परिवेश से खुश नहीं थे। जब जया बच्चन से यह पूछा गया कि अमिताभ जी ने जल्द राजनीति क्यों छोड़ दी जबकि वो खुद लंबे समय से राजनीति में बनी हुई हैं? इसके जवाब में जया बच्चन ने कहा कि अमित जी ने भावुक होकर राजनीति ज्वाइन तो कर ली थी लेकिन बहुत जल्द उन्होंने कहा था कि वो राजनीति नहीं कर सकते हैं। बतौर जया, यह अमिताभ बच्चन के स्टाइल के खिलाफ था।
जया ने बताया कि अमिताभ ने तब कहा था कि वो राजनेताओं की तरह नहीं रह सकते हैं। उनकी तरह बोल भी नहीं सकते हैं। बतौर जया बच्चन राजनीतिक करियर में अमिताभ बच्चन कभी भी सहज नहीं रह पाए थे। जया ने कहा कि अमिताभ बहुत ही निजी जिंदगी जीने वाले इंसान हैं और जब किसी सख्स को सिनेमा और जनता के बीच, दो प्रोफेशन में काम करना पड़ता है तो उसका जीवन सतह पर आ जाता है। बतौर जया, अमिताभ बच्चन इसे हैंडल नहीं कर पा रहे थे। इसी वजह से उन्होंने राजनीति से अपने कदम पीछे खींच लिए थे।
जब जया बच्चन से पूछा गया कि आपको कई बार लोगों ने राजनीतिक पटखनी देने की कोशिश की बावजूद आप हर बार कैसे जीत गईं? इसके जवाब में जया बच्चन ने कहा, “जब लोग मुझे गिराने की कोशिश करते हैं, तब मुझे पता होता है कि उससे कैसे मुकाबला करना है और कैसे जीत हासिल करनी है।” जया ने कहा, “आखिरकार मैं एक औरत हूं और यह जानती हूं कि कैसे अस्तित्व के लिए संघर्ष करना है?” साल 2006 के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट केस से जुड़े सवाल पर जया बच्चन ने कहा कि उस वक्त उन्हें राजनीतिक आलोचना का शिकार होना पड़ा था लेकिन उसे उन्होंने अकेले हैंडल नहीं किया था। उन्होंने कहा कि उस वक्त उन्हें बहुत लोगों का सहयोग मिला था। जया बच्चन ने कहा कि उस वक्त सबसे ज्यादा अमर सिंह ने साथ दिया था। बतौर जया, उस वक्त अमर सिंह ने उन्हें कहा था, मत घबराना, हमलोग सब ठीक कर देंगे। और ऐसा ही हुआ था। जया बच्चन ने कहा कि इस संकट के एक महीने के अंदर ही वो दोबारा संसद में थीं। आलोचनाओं पर उन्होंने यह भी कहा कि शायद अब उनकी चमड़ी मोटी हो गई है।