हिमाचल प्रदेश का मीलों दायरे में फैला चंद्रताल कराता है जमीन पर जन्नत का अहसास, देखें तस्वीरें
जमीन पर जन्नत का अहसास कराती है चंद्रताल। यह झील समुद्रतल से 14500 फीट की ऊंचाई पर है। हिमाचल प्रदेश के कबाइली क्षेत्र स्पीति में रेतीले, नंगे और सूखे पहाड़ों के बीच मीलों दायरे में फैली है यह। चंद्रताल अपने निर्मल शांत जल के लिए जानी जाती है। इस झील की झलक पाने के लिए हजारों किलोमीटर का सफर तय कर विदेशी सैलानी पहुंचते रहे हैं, जबकि झील तक पहुंचने का जो रास्ता है वह कई मीलों तक बेहद जोखिमपूर्ण और रोमांच वाला रहा है। वैसे, अब चंद्रताल जाने वालों के लिए काफी सुविधाएं मुहैया हो गई हैं। ठहरने के लिए यहां शिविर बन गए हैं। सड़क चंद्रताल के पास तक पहुंच गई है। अब तो यहां रोमांचक पर्यटन की झलक मिलने लगी है। युवाओं की टोली अपने बुलेट मोटरसाइकलों से यहां पहुंचने लगी है। मई से लेकर अक्तूबर मध्य तक सैलानियों की अच्छी भीड़ यहां होती है।
सुबह, दोपहर और शाम के नजारे यहां बिल्कुल अलग होते हैं। सूरज निकलने से पहले इस झील के किनारे आप पहुंच जाएं तो यहां के दृश्य ऐसे मोह लेंगे कि घंटों आपके कैसे गुजर गए पता ही नहीं चलेगा। इस झील के चारों ओर फैली मखमली घास दोपहर में और खूबसूरत लगने लगती है। रंग-बिरंगी रेखाओं में लिपटे पत्थर आपके मन को ऐसे बांध लेंगे कि आप उसपर लेटने और घूमने के लोभ से खुद को रोक नहीं पाएंगे। शाम को जब इस झील के शांत पानी में आसमान और जमीन की छाया एकाकार होती है तो पता ही नहीं चलता कि कोई पानी के अंदर देख रहा है या बाहर का नजारा उसे नजर आ रहा है। झील के चारों ओर बर्फ से ढकी जमीन और चांदी से चमकते ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की परछाई जब दिखती है तो सैलानी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। ऐसे में आसमां में जो चांद निकल आया हो तो तय है कि ऐसा अनुभव आपको और कहीं नहीं मिलेगा। प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य की लय पर आपका मन झूम उठेगा।
थकान हो जाती है गायब
रोहतांग की चढ़ाई और फिर ग्रामफू से लेकर बातल या कहें चंद्रताल तक विशालकाय पत्थरों के बीच चंद्रा नदी के साथ-साथ बनी सड़क से किया गया सफर हर सैलानी को थका देता है, पर जब वह इस झील के सौंदर्यपान करता है तो उसकी थकान खुद-ब-खुद गायब हो जाती है। मंडी से जाएं तो 240 किलोमीटर और शिमला से किन्नौर होकर जाएं तो 500 किलोमीटर से ज्यादा दूर है चंद्रताल। मनाली वाले रास्ते में मढ़ी से आगे चंद्रताल तक लगभग 100 किलोमीटर के रास्ते में एक भी घर या बस्ती नहीं है। पर छतडू और बातल में दड़बानुमा ढाबे हैं, जहां जरूरत की हर चीज मिल जाती है। छतडू़, छोटा दड़ा और बातल में रेस्ट हाउस हैं, जहां रुका जा सकता है। चंद्रताल से दो किलोमीटर पहले ठहराव शिविर बन चुके हैं।
सुरंग बनने से आसान होगी यात्रा
अभी चंद्रताल जाने के लिए 13 हजार फीट की ऊंचाई पर रोहतांग दर्रे से होकर जाना पड़ता है या फिर शिमला से किन्नौर होकर लंबे रास्ते से। पर अब रोहतांग सुरंग तेजी से बन रही है। 8.8 किलोमीटर लंबी इस सुरंग का निर्माण रोहतांग दर्रे के नीचे से हो रहा है, जो लाहुल घाटी को जोड़ेगी। अभी तक लाहुल घाटी रोहतांग दर्रे में कई-कई फीट बर्फ जमे रहने के कारण साल में छह महीने बंद रहती है। लगभग चार हजार करोड़ की लागत से यह सुरंग बनाई जा रही है, जिससे लाहुल व लद्दाख जाने के लिए 48 किलोमीटर रास्ता कम हो जाएगा। इस सुरंग की खुदाई का काम पूरा हो चुका है। दोनों सिरे आपस में मिल चुके हैं। अब इसे पक्का और चौड़ा करने का काम हो रहा है। उम्मीद है कि साल के अंत या अगले साल के शुरू में रोहतांग सुरंग बनकर तैयार हो जाएगी।