अमित शाह ने डिनर टेबल पर बैठकर कर्नाटक के दो बड़े नेताओं के बीच कराया समझौता, गले मिले दोनो बीजेपी नेता
जब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने डिनर टेबल पर बिठाया तब कही जाकर दूर हुए गिले-शिकवे और गले मिले दो नेता। कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सीएम उम्मीदवार बी एस येदियुरप्पा और पूर्व उप मुख्यमंत्री केएस ईश्वरप्पा के बीच दूरियां मिटाने में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति बिल्कुल सटीक साबित हुई। कर्नाटक में चुनाव प्रचार शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले अमित शाह जब कर्नाटक में थे तो दिन भर उन्होंने पार्टी के सीएम उम्मीदवार येदियुरप्पा के साथ चुनावी रणनीति पर चर्चा की लेकिन अचानक उन्होंने तय किया की डिनर केएस ईश्वरप्पा के घर पर होगा।
अमित शाह की तरफ से ईश्वरप्पा के घर पर डिनर के लिए मिले न्योते के प्रस्ताव को येदियुरप्पा टाल नहीं सके। इसी डिनर में अमित शाह ने दोनों नेताओं के बीच की सभी दूरियां मिटा दी। कहा जाता है कि इस रात्रिभोज के दौरान दोनों नेताओं ने अपने लंबे सहयोग को याद करते हुए आपसी द्वैष को खत्म कर एक दूसरे को गले लगा लिया।
शिमोगा सीट को लेकर थी तनातनी: दरअसल कुछ दिनों पहले बीजेपी की तरफ से राज्य में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा और उनके शिष्य रहे केएस ईश्वरप्पा के बीच टिकट बंटवारे को लेकर तनातनी हो गई थी। ईश्वरप्पा शिमोगा सीट से टिकट चाहते थे, लेकिन उस वक्त येदियुरप्पा इसके लिए तैयार नहीं थे। शिमोगा सीट से ईश्वरप्पा के लिए टिकट मांग रहे उनके समर्थकों का तर्क था कि ईश्वरप्पा ओबीसी के बड़े नेता हैं और उन्हें अनदेखा करना बीजेपी को भारी पड़ सकता है। इधर येदियुरप्पा ने इस मामले में ईश्वरप्पा से कहा था कि टिकट को लेकर वो कोई गारंटी नहीं ले सकते, इस बारे में फैसला पार्टी हाईकमान ही लेगा। कहा यह भी जाता है कि येदियुरप्पा अपने करीबी रहे रुद्रगोवड़ा को शिमोगा सिटी से टिकट दिलाना चाहते थे। हालांकि जब कुछ दिनों बाद जब बीजेपी ने कर्नाटक चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया तो उसमें ईश्वरप्पा को शिमोगा से उम्मीदवार बनाया गया।
रिश्तों में खटास पुरानी है: येदियुरप्पा और ईश्वरप्पा के रिश्तों में खटास की शुरुआत 2011 में तब हुई जब येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। उस वक्त येदियुरप्पा ने अपनी अलग पार्टी भी बना ली थी। जब साल 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान येदियुरप्पा की बीजेपी में वापसी हुई तो ईश्वरप्पा इससे खुश नहीं थे। वर्ष 2016 में जब एक बार फिर येदियुरप्पा को राज्य में बीजेपी का अध्यक्ष और मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया गया तो दोनों नेताओं के घाव और गहरे हो गए।