पिता के कंधे पर ऑक्सीजन सिलिंडर एवम मां की में मास्क लगा मासूम को लेकर इलाज के लिए दौड़ते रहे परिजन

उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में बच्चों के इलाज में लापरवाही के कई मामले अब तक आ चुके हैं। लेकिन ताजनगरी आगरा में बुधवार (2 मई) को जो हुआ, वह न सिर्फ शर्मनाक था, बल्कि बच्चों के इलाज की सरकारी व्यवस्था और तंत्र की पोल भी खोलने वाला था। इस मामले में सिर्फ 28 घंटे पहले पैदा हुए बच्चे को करीब 70 किमी दूर इलाज के लिए उसका पिता लाया था। लेकिन सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने आॅक्सीजन मास्क लगाने के बाद उसे अल्ट्रासाउण्ड करवाकर खुद लाने के लिए कहा। इसके बाद पिता अपने बच्चे के आॅक्सीजन सिलिंडर को कंधे पर उठाकर, जबकि मां नवजात और एक पांच साल की बेटी को सिर पर बैठाकर करीब आधा घंटे तक अस्पताल में इमारत ढूंढते रहे। अब इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार एक—दूसरे पर आरोप जड़ रहे हैं।

मामला आगरा जिले के सरकारी, सरोजनी नायडू शासकीय मेडिकल कॉलेज और चिकित्सा संस्थान का है। आगरा शहर से करीब 70 किमी दूर जैतपुर के राजाखेड़ा गांव में रहने वाले सूरज पुत्र रतन सिंह की पत्नी को करीब 28 दिन पहले बच्चा हुआ था। जन्म के बाद से ही बच्चे का पेट फूल रहा था। बुधवार (2 मई) को सूरज पुत्र रतन सिंह अपने पांच साल की एक संतान, अपनी पत्नी, नवजात और भाई के साथ एसएन मेडिकल कॉलेज आया था। गर्मी के कारण नवजात को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी।

बच्चे को बाल रोग विभाग में दिखाया गया। बाल रोग विभाग में जांच के बाद उसे अन्य जांचों के लिए माइक्रो बायोलॉजी विभाग में भेज दिया गया। इसके बाद बच्चे को आॅक्सीजन मास्क लगा दिया गया। आॅक्सीजन मास्क लगाने के बाद अल्ट्रासाउण्ड के लिए उसे रेडियो डायग्नोसिस विभाग में जाने के लिए कहा गया। आरोप है न तो वार्ड ब्वॉय सूरज सिंह के साथ गया और न ही किसी ने उन्हें जाने का रास्ता बताया। जबकि नियम है कि आॅक्सीजन लगने के बाद मरीज अगर कहीं किसी विभाग में जांच के लिए जाता है तो वार्ड ब्वॉय स्टैंड पर मास्क लेकर साथ जाता है, जबकि मरीज स्ट्रेचर पर लेटा होता है। बच्चों की सभी जांचें विभाग में ही होती हैं जबकि रेडियो डायग्नोसिस विभाग में बीमारी की गंभीरता के आधार पर प्राथमिकता से जांच की जाती है।

इसके बाद सूरज ने आॅक्सीजन के सिलिण्डर को अपने कंधे पर ले लिया। जबकि उनकी पत्नी आॅक्सीजन मास्क लगाए बच्चे को गोद मेंं लिए थीं। उनके भाई पांच साल के बच्चे को अपने कंधे पर ​बैठाए थे। ऐसी हालत में ये पूरा परिवार चिलचिलाती धूप के बीच करीब एक घंटे तक पूरे अस्पताल में घूमता रहा। इसके बाद किसी ने उन्हें रेडियो डायग्नोसिस विभाग विभाग का पता बताया। काफी मिन्नतों के बाद बच्चे की जांच हुई और बच्चे को वापस बाल रोग विभाग में भर्ती किया गया।

मीडिया में खबर आने के बाद अब कोई भी इस मसले पर बोलने के लिए तैयार नहीं है। बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश्वर दयाल ने कहा कि मुझे जो कहना था, मैं प्राचार्य के सामने कह चुका हूं। वहीं प्रमुख अधीक्षक डॉ. अजय अग्रवाल ने कहा कि मामले की जांच के आदेश दिए जा चुके हैं।

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