गौ तीर्थ बनने जा रहे इस गांव में गाय के नाम पर हुआ था इंसानों का कत्ल-ए-आम, है 40 साल पुराना गौ रक्षक शहीद स्मारक

उत्तराखंड सरकार हरिद्वार स्थित उस गांव को गौ तीर्थ बनाने जा रही है जहां पर 1918 में गौ हत्या पर हुई हिंसा को लेकर कई लोगों की जान गई थी। कतरपुर में पहले से गायों की संख्या में कमी आई है और यहां 40 साल पहले गौ रक्षक शहीदों की याद में स्मारक बनवाया गया था। 99 साल बाद इस घटना के बीत जाने के बाद सरकार ने फैसला लिया है कि कतरपुर के इस गौ रक्षक शहीद स्मारक को गौ तीर्थ में तब्दील कर दिया जाए। इस जगह को गौ तीर्थ बनाने का प्रस्ताव पिछले महीने हुई आरएसएस पदाधिकारियों, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और टूरिज़्म मिनिस्टर सतपाल महाराज के बीच बैठक में रखा गया था। द संडे एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान सतपाल महाराज ने कहा कि हम गाय रक्षकों से जुड़े इस गांव के इतिहास की जानकारी जुटा रहे हैं ताकि इसे उत्तराखंड टूरिज्म के ब्रोशर में शामिल किया जा सके। हम पूरी तरह से कतरपुर को गौ तीर्थ बनाने के पक्ष में हैं।

गांव की 11 सदस्य गौ रक्षक कमेटी के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह चौहान ने मार्बल से बने एक गाय के मॉडल को दिखाते हुए कहा कि यही वह जगह है जहां पर  मुसलमान गाय को बांधते थे और बकरीद के मौके पर उनकी हत्या किया करते थे। ब्रिटिश आंकडों के अनुसार दशकों पहले हुई हिंसा में केवल तीन मुसलमानों की मौत होने की बात कही गई थी। हमारे पूर्वजों ने हमें बताया था कि इस हिंसा में कई मुसलमान मारे गए थे और कुछ हिन्दुओं की भी मौत हुई थी जो कि मुसलमानों से गाय की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे।

गौ रक्षक कमेटी द्वारा पब्लिश की जाने वाली मैग्जीन के अनुसार इस हिंसा के आरोप में चौधरी मुख्खा सिंह चौहान समेत चार लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। करीब 136 कतरपुर और 29 इसके पास के गांव के लोगों को 10-10 साल की सजा हुई थी, जिन्हें काला पानी भेज दिया गया था। इस घटना के बाद कतरपुर से मुस्लिमों ने पलायन कर लिया था लेकिन अब इस गांव में हजारों की संख्या में हिंदू, 1600 दलित और 1200 मुसलमान रहते हैं और इन लोगों के बीच किसी भी प्रकार का कोई सम्प्रदायिक हिंसा नहीं हुई है। हिंसा के बाद जीव हत्या पर बना लगा दिया गया जिसे अन्य धर्म के लोगों के अलावा सभी मुसलमान भी फॉलो करते हैं।

 

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