अमेरिकी पाबंदी के बावजूद भारत ईरान के साथ

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश के लिए अमेरिका द्वारा वित्तीय प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर भारत ने कहा है कि इस मसले को बातचीत और राजनयिक उपायों के तहत सुलझाना चाहिए। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बुधवार की शाम जारी बयान में कहा, भारत ने हमेशा ही कहा कि इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भावनाओं का ख्याल रखते हुए इसे तय समझौते के तहत सुलझाना चाहिए। सहयोगी देशों का प्रस्ताव ठुकराते हुए अमेरिका इससे बाहर आ गया। अन्य यूरोपीय देश इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ नहीं हैं। फ्रांस की अगुवाई में सभी यूरोपीय देशों ने अमेरिका पर इस संधि में बने रहने का दबाव बनाया था। भारत ने कहा कि संयुक्त वृहद कार्रवाई योजना (जेसीपीओए) के तहत इस मुद्दे पर बातचीत जरूरी है। जेसीपीओए पर ईरान और पी5 और एक (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों- चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और अमेरिका के साथ जर्मनी) और यूरोपीय संघ ने वियना में 14 जुलाई, 2015 को दस्तखत किए थे। जेसीपीओए के तहत वित्तीय प्रतिबंध हटाए जाने के बदले ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रम में कटौती करनी है।

उधर, वित्त मंत्रालय का कहना है कि अमेरिका द्वारा ईरान पर वित्तीय प्रतिबंध के फैसले से भारत का वहां से कच्चे तेल का आयात प्रभावित नहीं होगा। जब तक यूरोपीय संघ भी इसी तरह के कदम नहीं उठाता, ईरान से कच्चे तेल के आयात पर असर नहीं पड़ेगा। अधिकारियों ने कहा कि भारत अपने तीसरे सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ता को यूरो में यूरोपीय बैंकिंग चैनल का इस्तेमाल कर भुगतान करता है। जब तक कि इसे नहीं रोका जाता, तब तक आयात जारी रहेगा। सरकारी पेट्रोलियम कंपनी, इंडियन आयल कॉरपोरेशन के निदेशक (वित्त) एके शर्मा ने कहा कि फौरन इसका कोई असर नहीं होगा, लेकिन हमें यह इंतजार करना होगा कि अन्य देश, विशेष रूप से यूरोपीय ब्लॉक क्या प्रतिक्रिया देता है। शर्मा ने कहा कि अगर यूरोपीय संघ यथास्थिति कायम रखता है और पुन: प्रतिबंध नहीं लगाता है, तो भारत को ईरान की आपूर्ति में कोई बाधा नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि यूरोपीय देश भी यदि अमेरिका की तरह ईरान पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो भारत के लिए कच्चे तेल की खरीद का भुगतान करना मुश्किल हो जाएगा।

विदेश मंत्रालय के अनुसार, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रान ने अप्रैल के मध्य में अपनी वाशिंगटन यात्रा के दौरान यह लॉबिंग की थी कि अमेरिका इस समझौते में बना रहे। उन्होंने कहा था कि फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन को अमेरिका द्वारा संयुक्त वृहद कार्रवाई योजना (जेसीपीओए) से बाहर निकलने का अफसोस है। जेसीपीओए पर ईरान और पी5 और एक (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों- चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और अमेरिका के साथ जर्मनी) व यूरोपीय संघ ने वियना में 14 जुलाई, 2015 को हस्ताक्षर किए थे। जेसीपीओए के तहत वित्तीय प्रतिबंध हटाए जाने के बदले ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रम में कटौती करनी है। इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है। अप्रैल, 2017 से जनवरी, 2018 के दौरान उसने भारत को 1.84 करोड़ टन कच्चे तेल की आपूर्ति की है।

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