इस स्कूल में बच्चों से बनवाया जा रहा है मिड-डे मील, रोटी बेलते कैमरे में कैद हुईं छात्राएं
सरकारी स्कूलों में बच्चों को भोजन मुहैया कराने वाली मिड-डे मील योजना अक्सर ही चर्चा में रहती है। योजना का ठीक से पालन न होने को लेकर सरकार पर अक्सर ही सवाल खड़ा होता रहा है। एक बार फिर उत्तर प्रदेश के एक सरकारी स्कूल से ऐसा वाकया सामने आया है, जिसकी वजह से इस योजना पर लोग फिर से सवालिया निशान लगा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं अकबरपुर की एक प्राथमिक शाला की। हिंदुस्तान के मुताबिक यहां प्राथमिक विद्यालय साहनी में रसोइया नहीं है, जिसके चलते बच्चों को खाना बनाना पड़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक यहां चार छात्राएं रोटी बेलते हुए कैमरे में कैद हुई हैं।
इस बात की खबर जब खंड शिक्षा अधिकारी वीएन द्विवेदी से की गई तब उन्होंने कहा कि इस मामले पर कार्रवाई की जाएगी और स्कूल के प्रधानाध्यापक से भी बात की जाएगी, जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे। साथ ही यह भी जानकारी दी गई कि प्राथमिक और उच्च प्राथमिक दोनों शालाओं का खाना पहले एक ही रसोईघर में बनता था, लेकिन बाद में खाना अलग बनने लगा। जल्द ही प्राथमिक शाला के लिए भी अलग भोजनघर बनेगा, अभी फिलहाल एक छप्पर के नीचे खाना बनाया जाता है।
बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है कि मिड-डे मील योजना को लेकर सवाल खड़ा किया जा रहा हो, इससे पहले भी इस योजना से संबंधित कई सारी खबरें सामने आ चुकी हैं। कुछ महीनों पहले यह खबर सामने आई थी कि पश्चिम बंगाल के एक स्कूल में मिड-डे मील में मरी हुई छिपकली निकली थी। इस खाने को खाकर 87 छात्र बीमार पड़ गए थे। वहीं झारखंड के भी संथाल परगना से भी एक खबर सामने आई थी, जहां बच्चे मिड डे मील खाने के बाद नाले का पानी पीते थे। वहीं मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक अधिकारिक सूत्रों के जरिए यह बात सामने आई थी कि सरकार मिड डे मील योजना के तहत प्राथमिक कक्षा स्तर पर प्रति छात्र प्रतिदिन चावल आधारित भोजन के लिए 6 रुपया 64 पैसा और माध्यमिक कक्षा स्तर पर प्रति प्लेट 9 रुपया 60 पैसा खर्च करती है। इसी प्रकार प्राथमिक कक्षा स्तर पर प्रति छात्र प्रतिदिन गेहूं आधारित भोजन के लिए 5 रुपया 70 पैसा और माध्यमिक कक्षा स्तर पर 8 रुपया 20 पैसा लागत आती है।