रोडरेज केस में नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, महज जुर्माना लगाकर किया बरी
30 साल पुराने रोडरेज केस के मामले में पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने सिद्धू को रोडरेज मामले में आईपीसी की धारा 323 के तहत दोषी ठहराया, लेकिन धारा 304(II) के तहत बरी भी कर दिया। कोर्ट द्वारा सिद्धू के ऊपर महज जुर्माना लगाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को साल 1988 के रोडरेज विवाद के दौरान हुई हत्या के मामले में यह फैसला सुनाया। कोर्ट के फैसले के बाद मंत्री की कुर्सी पर लटकती तलवार से सिद्धू को बड़ी राहत मिली है।
इससे पहले सिद्धू के मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उनके मुवक्किल निर्दोष हैं और उन्हें इस केस में गलत तरीके से आरोपी बनाया गया है। वहीं अप्रैल के महीने में सिद्धू की ही सरकार ने इस मामले में उन्हें सजा देने की मांग की थी। पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 1988 के पटियाला रोड रेज मामले में क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिद्धू की सजा को बरकरार रखने की मांग की थी।
बता दें कि सिद्धू के ऊपर चल रहे रोडरेज केस में सुप्रीम कोर्ट ने करीब एक महीने पहले ही फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में सुप्रीम के दो सीनियर जजों जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल की खंडपीठ ने सुनवाई की थी। 12 अप्रैल को पंजाब सरकार ने कोर्ट में कहा था, ‘इस मामले में सिद्धू के द्वारा खुद को बेकसूर बताने वाला बयान पूरी तरह से गलत है।’ बता दें कि जिस पंजाब सरकार के मंत्री सिद्धू हैं वही सरकार उनके खिलाफ थी। इस पर सिद्धू ने कहा था कि उनकी पीठ पर छूरा घोंपा गया है।
क्या है मामला ?
मामला आज से तीस साल पहले का है। 27 दिसंबर 1988 की शाम सिद्धू अपने दोस्त रुपिन्दर सिंह सिद्धू के साथ पटियाला के शेरावाले मार्केट घुमने गए थे। वहां कार पार्किंग को लेकर उन दोनों की बहस 65 साल के बुजुर्ग गुरनाम सिंह से हो गई। बहस बढ़ते गई और बात मारपीट तक पहुंच गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक सिद्धू ने गुरनाम को धक्का दे दिया, जिसके कारण वह सड़क पर गिर गए। बुजुर्ग को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मरा हुआ घोषित कर दिया। पोस्टमार्टम में सामने आया कि मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए पटियाला के सेशन कोर्ट ने 22 सितंबर, 1999 को सिद्धू और उनके सहयोगी रूपिन्दर सिंह संधू को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था, लेकिन पीड़ित परिजनों ने इस फैसले के खिलाफ पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में अपील की थी। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सिद्धू को आईपीसी की धारा 304 के तहत दोषी मानते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी। लेकिन पीड़ित पक्ष ने इस मामले में सजा बढ़वाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।