कर्नाटक चुनाव परिणाम 2018: योगी फैक्‍टर से लगा कांग्रेस काेे झटका, 33 सीटों पर हुआ नुकसान

ये कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ही थे, जिन्होंने कर्नाटक चुनाव के प्रचार में कर्नाटकवासी बनाम बाहरी का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कर्नाटक की अस्मिता का सवाल उठाते हुए कहा था कि भाजपा, उत्तर भारत के नेताओं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राज्य में प्रचार करने के लिए आयात कर रही है। लेकिन तारीख गवाह है कि योगी आदित्यनाथ का प्रचार कांग्रेस और सीएम सिद्धारमैया को बहुत महंगा पड़ा है।

सिद्धारमैया ने ट्वीट किया था,’ कर्नाटक भाजपा, अपने आयातित उत्तर भारतीय नेताओं जैसे पीएम मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इंतजार कर रही है क्योंकि उनके पास कर्नाटक में कोई भी नेता नहीं हैं।’ लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। जिन 33 विधानसभा सीटों पर योगी आदित्यनाथ ने प्रचार किया था, सभी भाजपा की झोली में जाती दिख रही हैं। भाजपा की राज्य इकाई ने भी इन सीटों पर बेहतरीन प्रदर्शन करने का श्रेय कार्यकर्ताओं और योगी आदित्यनाथ को ही दिया है।

दरअसल, योगी आदित्यनाथ हिन्दुत्व के जिस नाथ संप्रदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसे हिन्दू धर्म में सुधारवादी आंदोलन चलाने के लिए जाना जाता है। ये शैव पंथ की शाखा है। नाथ संप्रदाय ब्राह्मणवादी और जाति प्रथा का विरोधी है। धार्मिक नेता होने के नाते योगी आदित्यनाथ के लिंगायत संप्रदाय के कई धर्मगुरुओं के साथ निजी संबंध भी हैं। बीजेपी को उम्मीद थी कि अपनी पृष्ठभूमि के कारण योगी आदित्यनाथ की बात अन्य प्रदेशों की जनता के बीच भी सुनी जाएगी। लेकिन चुनाव नतीजों ने बीजेपी की सोच को सही साबित कर दिया है।

कर्नाटक में भाजपा के लिए प्रचार करते हुए योगी आदित्यनाथ ने सिरसी, सागर, बालेहोनरु, बेलूर, होनाहल्ली, हलियाला, मुदे​बिहाला, मुधोल, तेरदल और धारवाड़, भलकी, हुमनाबाद, गोकाक, खानपुर, यमकनमरादी और बेलगाम ग्रामीण में प्रचार किया था। उन्होंने बिंदूर, भटकल, मुदाबिदरे, विराजपेट, सुलिया, हिरेकेरूरू, हसपेट, अतिबेले, सहकारनगर, इंडी, चंदाचन के साथ ही बंतावल में रोड शो भी किया था। आश्चर्यजनक रूप से भाजपा अब इन सभी सीटों पर आगे चल रही है। हालांकि योगी की कट्टर हिन्दुत्ववादी की छवि भाजपा के लिए नई नहीं है। इसके बावजूद उन्हें गुजरात चुनावों के दौरान इस्तेमाल किया गया। इससे पहले उन्हें केरल भी भेजा गया था। जहां भाजपा—आरएसएस और वामपंथियों के बीच वर्चस्व का संघर्ष जोरों से चल रहा था।

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