मशहूर फ़िल्मस्टार होने के बावजूद ऋषिकेश के एक ढाबे में काम करते थे संजय मिश्रा, जानिए क्यों?
संजय मिश्रा का नाम इस दौर के सबसे महत्वपूर्ण कैरेक्टर एक्टर्स में शुमार किया जाता है। संजय ने पिछले एक दशक में बॉलीवुड की कई लीक से हटकर फ़िल्मों में काम किया है और अपने आपको एक सफ़ल एक्टर के तौर पर स्थापित किया है। लेकिन इस कलाकार की ज़िंदगी में एक दौर ऐसा भी था जब वो बॉलीवुड की मायावी दुनिया को छोड़-छाड़ कर ऋषिकेश में एक ढाबे पर काम करने लगे थे। संजय मिश्रा मूल रूप से बिहार के दरभंगा के रहने वाले हैं। उनके पिता शम्भुनाथ मिश्रा पेशे से पत्रकार थे और उनके दादा डिस्ट्रीक्ट मजिस्ट्रेट थे। जब वे नौ साल के थे तो उनकी फैमिली वाराणसी शिफ्ट हो गई थी। संजय शुरूआती संघर्ष के बाद एक एक्टर के तौर पर स्थापित होने लगे थे और वे अपनी फ़िल्म ‘ऑल द बेस्ट’ की रिलीज़ का इंतज़ार कर रहे थे। हिंदुस्तान टाइम्स को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि ‘वो एक बेहद अजीबोगरीब दौर था। मैं काफी ज़्यादा बीमार था और डॉक्टर्स ने भी मुझे कुछ ही घंटों का टाइम दिया था। मेरे पिता इसके बाद मुझे जेबी पंत अस्पताल ले गए। मैं एक महीने में ठीक हो गया लेकिन मेरे पिता इस घटना के कुछ दिनों बाद ही चल बसे थे। मैं निराश और हताश था और मैंने उत्तराखंड के ऋषिकेश में एक ढाबा में काम करने का फ़ैसला किया था।’ उन्होंने कहा – ‘ऐसा इसलिए क्योंकि काम करना मेरा शौक था। मैं पैसा उड़ाने वालों में से नहीं था।’
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि एक एक्टर के तौर पर मिली लोकप्रियता के चलते उन्हें अपनी जॉब गंवानी पड़ी थी. बकौल संजय, ‘ऑफिस ऑफिस उस दौरान टीवी पर चल रहा था. गोलमाल और धमाल रिलीज़ हो चुकी थी। मेरी ज़िंदगी में दिलचस्पी कम होती जा रही थी इसलिए मैंने ऋषिकेश जाने का फ़ैसला किया था। वहां मुझे एक बूढ़ा व्यक्ति मिला जिसे कुछ मदद की ज़रूरत थी तो मैंने उसे जॉइन कर लिया। लेकिन जब भी मुझसे कोई मिलने आता तो ये शख़्स टकटकी लगाए मुझे देखता रहता। दिन बीतते गए और कई लोगों की मुझसे मुलाकात के चलते वो घबरा गया और मुझे उस जगह से अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। अभिनेता के तौर पर मिली लोकप्रियता ने मेरी नौकरी को मुझसे छीन लिया था लेकिन मैं कोशिश करूंगा कि ऐसा ही कुछ काम एक बार फिर से शुरू कर सकूं।’
क्या एक्टर के तौर पर इस तरह की बेफ़्रिकी और अनिश्चितता के चलते फ़िल्ममेकर्स और प्रोड्यूसर्स आपसे परेशान नहीं होते ? इस सवाल पर संजय ने कहा – ‘निर्देशक मणिरत्नम हो गए थे। उन्होंने मुझे फ़िल्म ‘दिल से’ में आतंकवादी का रोल दिया था। लेकिन जब वो मुझे शूटिंग से पहले मिले तो उनके दिमाग में काफी कुछ चल रहा था. उन्हें लगा कि अगर एक आतंकवादी इस तरह बात करेगा तो मैं शूट कैसे कर पाऊंगा? मैंने उन्हें हंसते हुए कहा था कि ये सब तुम्हारी गलती है, अब तो मैं ही इस रोल को करूंगा।’
‘आंखो देखी,’ ‘कड़वी हवा’ और ‘अंग्रेज़ी में कहते हैं’ जैसी फ़िल्मों के साथ ही संजय इंडस्ट्री के उन चुनिंदा कलाकारों में शुमार हो चुके हैं जिन्हें बॉलीवुड में अलग-अलग थीम और जॉनर में अपनी कला के जौहर दिखाने का मौका मिल रहा है। संजय कहते हैं कि ‘मैं खुश हूं। मुझे ये प्रक्रिया बेहद पसंद आ रही है। किसी भी कलाकार के लिए इससे बेहतरीन बात क्या होगी कि उसे अलग अलग थीम पर बनी फ़िल्मों में महत्वपूर्ण किरदार निभाने का मौका मिलता रहे।’
संजय जल्द ही फ़िल्म ‘अंग्रेज़ी में कहते है’ नाम की फ़िल्म में नज़र आएंगे। उन्होंने बताया कि ‘ये फ़िल्म ज़िंदगी के बारे में है। हम कभी-कभार अपनी ज़िंदगी में इतने मशगूल हो जाते हैं कि कई बार एहसास ही नहीं होता कि हम इस दौरान अपनी ज़िंदगी में क्या कुछ खोते जा रहे हैं। अक्सर 40 की उम्र से पार होने के बाद लोग ज़िंदगी के प्रति उब से भर जाते हैं। इस फ़िल्म में मेरा किरदार किसी का पिता, किसी का अंकल या कोई भी हो सकता है। ये शख़्स वाराणसी के एक पोस्ट ऑफिस में काम करता है। मैं एक आम इंसान हूं और ज़्यादातर आम लोगों की तरह मेरी ज़िंदगी में भी एक ही ज़रूरी काम बचा हुआ है. वो है, मेरी बेटी की शादी और वो भी मेरी बेटी की मर्ज़ी के खिलाफ़।’