येदियुरप्पा को जिताने के लिए 2010 में 16 विधायकों को अयोग्य घोषित कर चुके हैं बोपैया, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी फटकार
बीएस. येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बावजूद कर्नाटक में सत्ता के लिए संग्राम अभी तक थमा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार उन्हें शनिवार (19 मई) शाम चार बजे तक विधानसभा में बहुमत साबित करना है। इससे पहले राज्यपाल वजुभाई वाला ने भाजपा के वरिष्ठ नेता केजी. बोपैया को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त कर दिया है। इसको लेकर नया विवाद शुरू हो गया है। कांग्रेस ने इसे रूल बुक के साथ परंपरा का भी उल्लंघन करार दिया है। बोपैया को लेकर पहली बार विवाद नहीं हुआ है। वर्ष 2010 में भी विधनसभा अध्यक्ष के तौर उनकी कार्यप्रणाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की थी और फटकार भी लगाई थी। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि बोपैया ने विश्वास मत में तत्कालीन मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की जीत सुनिश्चित करने के लिए 16 विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया था। कोर्ट ने विधायकों की अयोग्ता को लेकर लिए गए उनके फैसले को गंभीर, दलगत भावना से प्रेरित और जल्दबाजी में उठाया गया कदम करार दिया था। अदालत ने बोपैया की कार्रवाई को ‘स्वाभाविक न्याय’ और ‘निष्पक्ष कार्यवाही’ के भी खिलाफ माना था।
सुप्रीम कोर्ट ने बोपैया की कार्रवाई को गैरजरूरी विचारों से प्रेरित करार दिया था। कोर्ट ने कहा था, ‘विश्वास मत पर वोटिंग सीएम (तत्कालीन) के खिलाफ न जाए इसको सुनिश्चित करना न होता तो अयोग्यता के आवेदन पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इतनी जल्दबाजी में कदम न उठाया गया होता। कार्रवाई के पीछे कोई उचित वजह नहीं है।’ अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को देखकर ऐसा लगता है कि उन्होंने इतनी जल्दबाजी इसलिए की कि राज्यपाल द्वारा तय समय अवधि (विश्वास मत पर मतदान के लिए) में सबकुछ कर लिया जाए। कोर्ट ने आगे टिप्पणी की थी कि इसको ध्यान में रखते हुए ही आवेदक और निर्दलीय विधायकों को तब वक्त तक के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया था, जब तक कि विधानसभा में शक्ति परीक्षण न हो जाए। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष बोपैया ने 10 अक्टूबर को विधायकों को अयोग्य ठहराया था, जबकि सदन में विश्वास मत पर मतदान 12 अक्टूबर को होना था। कोर्ट ने कहा था कि बोपैया ने संवैधानिक प्रावधानों को नजरअंदाज करते हुए विधायकों को अयोग्य ठहराने की कार्रवाई की थी।