जाने क्यूँ भगवान शिव और भगवान राम के बीच हुआ था प्रलयकारी युद्ध, पढ़ें ये रोचक प्रसंग
भगवान राम और शिव जी से जुड़े हुए तमाम प्रसंग बड़े ही प्रसिद्ध हैं। इन्हीं प्रसंगों में से एक है राम और शिव जी के बीच हुआ प्रलयकारी युद्ध। जी हां, यह बात सुनने में अजीब लग सकती है, लेकिन पुराणों के मुताबिक राम और शिव जी में यह युद्ध हुआ था। यह घटना उस समय पेश आई थी जब श्रीराम का अश्वमेघ यज्ञ चल रहा था। राम के अनुज शत्रुघ्न के नेतृत्व में वीरों की भारी सेना कई सारे प्रदेशों पर जीत हासिल करती जा रही थी। शत्रुघ्न के अलावा इस अभियान में हनुमान जी, सुग्रीव और भरत के पुत्र पुष्कल भी शामिल थे। इन वीर योद्धाओं के साथ दूसरे कई महारथी भी अपना योगदान दे रहे थे।
इस क्रम में अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा देवपुर प्रदेश पहुंचा। देवपुर में राजा वीरमणि का शासन था। वीरमणि के दो पुत्र थे- रुक्मांगद और शुभंगद। वहीं, राजा वीरमणि के भाई का नाम वीरसिंह था जो कि बड़े ही पराक्रमी थे। बता दें कि वीरमणि ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। वीरमणि की तपस्या से शिव जी प्रसन्न हुए थे। उन्होंने वीरमणि और उनके प्रदेश की रक्षा का वरदान दिया था। उधर, अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े के देवपुर पहुंचते ही वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया और युद्ध करने का प्रस्ताव रखा दिया। इसके बाद शत्रुघ्न के नेतृत्व में अयोध्या सेना और देवपुर की सेना में भयंकर युद्ध शुरु हो गए।
भरत के पुत्र पुष्कल और वीरमणि के बीच सीधा युद्ध हुआ। वीरमणि पुष्कल के प्रहारों से अंत में मूर्छित हो गए। उधर, शत्रुघ्न ने वीरमणि के पुत्रों को नागपाश में बांध लिया। इसके बाद शिव जी ने अपने भक्त की रक्षा के लिए वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी, भृंगी सहित कई लोगों को युद्ध में भेज दिया। इस युद्ध में अयोध्या की सेना कमजोर पड़ने लगी। इसेक उपरान्त राम और शिव जी का युद्ध में आगमन हुआ।
शिव जी ने कहा कि हे राम, आप स्वयं विष्णु के दूसरे रूप हैं। मेरी आपसे युद्ध करने की इच्छा नहीं है। लेकिन मैंने वीरमणि को उसकी रक्षा का वरदान दिया है। इस पर राम और शिव जी में युद्ध शुरू हो गया। युद्ध में राम ने पाशुपतास्त्र से शिव जी पर वार किया। इस अस्त्र पर शिव का ही वरदान था कि इससे कोई भी पराजित हो सकता है। यह अस्त्र शिव के हृदयस्थल में समां गया और वह संतुष्ट हुए। युद्ध से प्रसन्न शिव ने राम को वरदान दिया कि सारे योद्धाओं को जीवनदान मिल जाएगा। इसके बाद शिव की आज्ञा से वीरमणि ने यज्ञ का घोड़ा राम को लौटा दिया।