पीएम नरेंद्र मोदी डिग्री विवाद: RTI पर भड़का डीयू, बताया ‘चीप पब्लिसिटी स्टंट’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर एक बार फिर से विवाद बढ़ गया है। सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत अब इंटरवेंशन अर्जी दाखिल की गई है। आवेदन में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से पीएम मोदी की डिग्री के बारे में जानकारी मांगी गई है। डीयू ने आरटीआई कार्यकर्ताओं के इस कदम को सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का तरीका करार दिया है। अंजलि भारद्वाज, निखिल डे और अमृता जौहरी की ओर से अर्जी दाखिल की गई है। मामले पर 22 मई को जस्टिस (रिटायर्ड) राजीव शकधर की पीठ ने इस पर सुनवाई की। डीयू की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए थे। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता ने आवेदकों को दूसरों के काम में बाधा डालने के साथ ही दूसरों के अधिकार में हस्तक्षेप करने वाला करार दिया। उन्होंने कहा कि आवेदक गुपचुप तरीके से मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे हैं। बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी के डिग्री विवाद में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने दिसंबर 2016 में 1978 के डीयू रिकॉर्ड की पड़ताल करने का निर्देश दिया था। सीआईसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय को वर्ष 1978 में बीए पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड की पड़ताल करने का निर्देश दिया था। डीयू के अनुसार, पीएम मोदी ने इसी साल बीए की परीक्षा पास की थी। डीयू ने सीआईसी के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दे रखी है।
जस्टिस शकधर ने आवेदकों द्वारा कानूनी बिंदुओं को उठाने की बात मानी थी। मामले की सुनवाई को 23 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया है। बता दें कि डीयू ने सीआईसी के समक्ष पीएम मोदी की डिग्री को थर्ड पार्टी इंफॉर्मेशन बताया था। हालांकि, आयोग ने यूनिवर्सिटी की इस आपत्ति को खारिज कर दिया था। डीयू ने छात्रों के साथ विश्वास आधारित संबंधों का हवाला देते हुए सीआईसी के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इंटरवेंशन अर्जी में आवेदकों ने विश्वविद्यालय की इस दलील पर भी सवाल उठाए गए हैं। इसमें आरटीआई कानून की धारा 8(3) का हवाला दिया गया है। इसके तहत 20 वर्ष या उससे ज्यादा का वक्त होने के बाद कानून के अंतर्गत हासिल ज्यादातर छूट समाप्त हो जाती हैं। आवेदकों ने दलील दी है कि कानूनी प्रावधानों को देखते हुए मौजूदा मामले में विश्वास आधारित संबंध को आधार बनाकर जानकारी देने से इनकार नहीं किया जा सकता।