पारदर्शिता का दिखावा

मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान के मंत्रिमंडल फेरबदल की चर्चा गरम है। नवरात्रों में दे सकते हैं शिवराज इस कवायद को अंजाम। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को जीतने की गरज से मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा का नाटक भी जरूरी होता है। जब तक कुछ मंत्रियों को नाकारा बता कर उनकी छुट्टी और कुछ चहेतों को उनकी जगह दाखिल करने की कवायद न हो, सियासी नीरसता ही नजर आती है। यह बात अलग है कि अब प्रभात झा, कैलाश विजयवर्गीय और थावरचंद गहलौत से मंत्रणा की कतई जरूरत नहीं महसूस करते चौहान। फिलहाल कुसुम महदेले, हर्ष सिंह, ओमप्रकाश धुर्वे और सूर्यप्रकाश मीणा जैसे मंत्रियों को असफल बता मीडिया उनकी छुट्टी की अटकलों को फैला रहा है।

एक तरफ सियासी उठापटक से माहौल गरमाया है तो दूसरी तरफ सूबे के आइएएस अफसर केंद्र के सौतेले रवैए पर उबल पड़े हैं। राज्य आइएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष राधेश्याम जुलानिया ने तो बाकायदा केंद्र के कार्मिक मंत्रालय को शिकायती लहजे में चिट्ठी लिख मारी है। आइएएस अफसरों के कैडर को यही मंत्रालय नियंत्रित करता है। जुलानिया को प्रधानमंत्री का 360 डिग्री फार्मूला अखर रहा है। उन्हें लगता है कि इस फार्मूले से वरिष्ठ अफसर अवसाद की स्थिति में जा रहे हैं। केंद्र सरकार उत्तरदायित्व तय किए बिना मौखिक फीडबैक के आधार पर तय करेगी आइएएस अफसरों का भविष्य। यानी केंद्र में आसान नहीं होगी अब राज्यों के अफसरों की तैनाती। यूरोप के इस फार्मूले को भारत जैसे गरीब और अपरिपक्व लोगों के देश में व्यावहारिक नहीं मान रहे आइएएस अफसर।

अफसर राज
एकदम मोदी की तर्ज पर राजकाज चला रहे हैं बिहार के मुख्यमंत्री। नीतीश कुमार को अफसरों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा है। आइएएस और आइपीएस ही नहीं, प्रांतीय प्रशासनिक और पुलिस सेवा के अफसर खुश रहें और साथ दें तो किसी भी मुख्यमंत्री का सपना अधूरा नहीं रहेगा। वे तो हर समस्या का समाधान खोज ही लेते हैं। ऐसी आम धारणा है कि प्रतिकूल स्थिति में भी वे बदलाव ला सकते हैं। नीतीश भी जानते हैं कि अफसर बड़े काम के होते हैं। 2005 में जब पहली बार सत्ता संभाली थी तो सबसे पहले अफसरों को ही साधा था। उन्हें तरह-तरह से भरोसा देकर उनका विश्वास हासिल किया था। ज्यादातर अफसर उनके मुरीद हो गए थे। नीतीश ने जिस काम को भी शुरू किया उसी में कामयाबी मिली। जो चाहा पूरा कर दिखाया। विरोधियों को कुछ नहीं सूझा तो लगे राग अलापने कि अफसर राज है। पर नीतीश अफसरों की महिमा को बखूबी समझते हैं।

पिछले एक-डेढ़ साल से उनकी अफसरों से दूरी बड़ी थी। वजह न तो नीतीश थे और न अफसर। दोनों की अपनी-अपनी मजबूरियां थीं। लेकिन अब दोनों ही उस मजबूरी से उबर गए हैं। इसीलिए नीतीश फिर उन्हें अपने करीब ला रहे हैं। जब केंद्र की वाजपेयी सरकार में मंत्री थे, तब भी कई अफसरों को करीब रखा था। कई अफसर तो ऐसे जुड़ गए कि जहां भी नीतीश गए, उन्होंने भी अपनी तैनाती वहीं कराई। पिछले दिनों एक ने तो नीतीश प्रेम में अच्छी भली नौकरी ही छोड़ दी। चर्चा है कि एक और अफसर भी जल्द ही इस्तीफा देने वाले हैं। पिछले दिनों जब नीतीश ने राजद को छोड़ भाजपा से हाथ मिलाया तो धारणा बनी कि नीतीश न तो सूबे की भलाई सोचते हैं और न जनता का हित। उन्हें तो बस कुर्सी प्यारी है और उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। इसी धारणा को झुठलाना चाहते हैं नीतीश, पर यह तभी मुमकिन हो पाएगा जब अफसरों का सहयोग पूर्व की भांति मिले। वे राहत महसूस कर सकते हैं क्योंकि अफसर तत्परता से सरकार के सहयोग की दिशा में बढ़ रहे हैं।

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