राजस्थानः कोटा के लहसुन उत्पादक किसान आत्महत्या को मजबूर

राजस्थान के कोटा संभाग के लहसुन उत्पादक किसानों को उपज का सही भाव नहीं मिलने से उनकी दशा खराब है। किसान संगठनों का आरोप है कि सही दाम नहीं मिलने से हताश पांच किसान अब तक आत्महत्या कर चुके है। सरकारी खरीद केंद्रों पर अव्यवस्था और गड़बड़ियों की भरमार से भी किसानों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने लहसुन खरीद की अवधि अब 15 मई से बढ़ाकर 31 मई तक कर दी है। कोटा संभाग के बारां, झालावाड़, बूंदी और कोटा जिलों में इस बार लहसुन की बंपर पैदावार होना किसानों के लिए दुखदायी साबित हो गया है। राजस्थान किसान यूनियन के नेता दशरथ कुमार का कहना है कि सरकार महज दिखावे के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत लहसुन की खरीद कर रही है। सरकारी केंद्रों पर जिस गति से लहसुन की खरीद की जा रही है, उससे तो इसमें एक साल से भी ज्यादा का समय लगेगा। सरकार ने खरीद की समय सीमा 31 मई ही निर्धारित कर रखी है। सरकार की मंशा किसानों को राहत पहुंचाने की कतई लगती ही नहीं है। उनका आरोप है कि लहसुन का उचित दाम नहीं मिलने से संभाग में अब तक पांच किसान आत्महत्या जैसा कदम उठा चुके है।

बारां जिले के बलदेवपुरा गांव के किसान चतुर्भुज मीणा 24 मई को मंडी में अपनी उपज लहसुन का भाव मालूम करने गए थे। वहां उन्हें 500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीद का भाव बताया गया। इससे उनकी हिम्मत टूट गई और उसी रात सल्फाल की गोलियां खाकर अपनी जान दे दी। इस किसान ने रकम जुटा कर जमीन गिरवी लेकर लहसुन का उत्पादन किया था। किसान संगठनों के अनुसार कोटा के बृजनगर के किसान हुकमचंद मीणा ने भी भाव नहीं मिलने और भारी कर्ज में दबे होने पर 23 मई को आत्महत्या कर ली। कोटा संभाग के किसान नेताओं का आरोप है कि अब तक पांच किसान आत्महत्या कर चुके है। ऐसे हालात के चलते किसानों में सरकार के प्रति गहरी नाराजगी पनपी हुई है।

सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत लहसुन खरीद के जो नियम बना रखे है वे बेहद कड़े हैं। इन कड़े नियमों के चलते ही ज्यादातर किसान इस योजना के दायरे से बाहर हो गए हैं। खरीद की पहली शर्त यह है कि लहसुन की गांठ का आकार न्यूनतम 25 मिलीमीटर होना चाहिए। जिन किसानों का लहसुन मापदंडों पर खरा उतर रहा है, उन्हें भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। खरीद केंद्रों की संख्या नाममात्र की होने के कारण ही किसानों को सरकारी केंद्रों पर गड़बड़ियों का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश के कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी का कहना है कि सरकार पूरी तत्परता से लहसुन की खरीद कर रही है। उनका कहना है कि सरकार की लहसुन खरीद नीति में कोई खामियां नहीं हैं।

गुणवत्ता देखकर ही लहसुन खरीदा जा रहा है, मापदंडों पर खरा नहीं उतरने वाला लहसुन नहीं खरीदा जा सकता है। सैनी का कहना है कि लहसुन उत्पादक किसानों के आत्महत्या करने जैसी बातें सही नहीं हो सकती है। उनका कहना है कि राजस्थान के किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति ही नहीं है। ऐसे मामलों की जब तक जांच नहीं हो जाए तब तक उसे भाव नहीं मिलने के कारण आत्महत्या मानना गलत है। सरकार इस मामले में पूरी तरह से संवेदनशील है।

राजस्थान किसान यूनियन के नेता दशरथ कुमार का कहना है कि सरकार महज दिखावे के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत लहसुन की खरीद कर रही है। सरकारी केंद्रों पर जिस गति से लहसुन की खरीद की जा रही है, उससे तो इसमें एक साल से भी ज्यादा का समय लगेगा। सरकार ने खरीद की समय सीमा 31 मई ही निर्धारित कर रखी है। सरकार की मंशा किसानों को राहत पहुंचाने की कतई लगती ही नहीं है। उनका आरोप है कि लहसुन का उचित दाम नहीं मिलने से संभाग में अब तक पांच किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

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