कुपोषण से मुक्ति: जिलाधिकारियों को संवेदनशील बनाने पर रहेगा जोर
देश को साल 2022 तक कुपोषण से आजाद करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार की जिलाधिकारियों को संवेदनशील बनाने की योजना है।
इसको लेकर केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्रालय, अन्य दो मंत्रालयों के साथ मिलकर मंगलवार को एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित रहा है, जिसमें देश भर के 113 जिलों के जिलाधिकारी या जिला प्रशासन के अन्य प्रतिनिधि शामिल होंगे। ये वो जिले हैं जहां बच्चों में बाधित विकास दर के आंकड़े चिंताजनक हैं। इनमें दिल्ली का उत्तर-पश्चिम जिला भी शामिल है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश की राजधानी के उत्तर-पश्चिम जिले में 38.6 फीसद बच्चों में विकास बाधित है और इस लिहाज से देश भर के 640 जिलों में इसका स्थान 262वां है।
केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2022 तक कुपोषण मुक्त भारत का लक्ष्य रखा है। इसके लिए केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्रालय (डब्लूसीडी) पहली बार केंद्रीय पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर मंगलवार को एक राष्ट्रीय सम्मेलन कर रहा है। डब्लूसीडी के सचिव राकेश श्रीवास्तव ने कहा कि यह पहली बार हो रहा है कि कुपोषण के मुद्दे पर तीन मंत्रालयों के लोग एक साथ बैठेंगे और देश के 113 जिलों के जिलाधिकारी भी इसमें शामिल होंगे। इस दौरान जिलाधिकारियों को इस बात के लिए संवेदनशील बनाया जाएगा कि वे कुपोषण से लड़ने के लिए सबसे बेहतर उपाय अपनाएं। उन्होंने कहा कि ज्यादातर जिला प्रशासन की प्राथमिकता कानून, जमीन और राजस्व होती है, लेकिन अब तीन महीने में एक दिन पोषण, पीने का साफ पानी और संबंधित मुद्दों पर फोकस करना होगा।
हालांकि, बाढ़ राहत में जुटे होने के कारण बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों के जिलाधिकारी सम्मेलन में शामिल नहीं हो सकेंगे। सरकार का लक्ष्य चयनित 113 जिलों में प्रतिवर्ष दो फीसद की दर से कमी लाना है। इन जिलों का चयन राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों से सबसे कुपोषित जिलों में से किया गया है जिनमें नीति आयोग द्वारा चुने गए 30 जिले भी शामिल हैं। ज्यादातर जिले उत्तर प्रदेश (27), बिहार (20) और मध्य प्रदेश (12) से हैं।