गोद लिए बेटे और मां के बीच बन सकते हैं संबंध- इस डर से यह हक नहीं देना चाहता मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड!
विधि आयोग इन दिनों समान नागरिक संहिता पर रिपोर्ट तैयार करने में जुटा है। आयोग ने इस सिलसिले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के साथ बैठक कर गोद लेने, उत्तराधिकार और बाल विवाह के अलावा अन्य मसलों पर विचार-विमर्श किया है। इस्लाम में गोद लेने की मनाही है, ऐसे में विधि आयोग इस मुद्दे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की राय जानना चाहता था। ‘दि प्रिंट’ के अनुसार, विधि आयोग और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों के बीच 21 मई को बैठक हुई थी। इसमें आयोग ने बोर्ड से विभिन्न मसलों पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। गोद लेने के मामले में बोर्ड आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखने वाला है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि गोद लिए बेटे और मां के बीच शारीरिक संबंध बनाने की आशंका रहती है। इसके अलावा महिला द्वारा गोद लिए गए बेटे और जैविक बेटी के बीच भी यौन संबंध की संभावना रहती है, ऐसे में गोद लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड विधि आयोग के समक्ष भी यही तर्क देने वाला है।
विधि आयोग के सदस्यों ने संकेत दिए हैं कि आयोग समान नागरिक संहिता लागू करने के बजाय पर्सनल लॉ में बदलाव की सिफारिश करेगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने बताया कि बोर्ड आयोग पर्सनल लॉ से जुड़े कुछ प्रावधानों में बदलाव के सुझावों पर विचार कर सकता है बशर्ते वह इस्लाम के साथ टकराव वाला न हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विरोधाभासी सुझावों को स्वीकार नहीं किया जाएगा। गोद लेने के मसले पर टकराव की स्थिति पहले भी उत्पन्न हुई है। बता दें कि वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी थी कि इस्लामिक पर्सनल लॉ में गोद लेने की मनाही है, इसके बावजूद किसी भी मुसलमान को बाल न्याय कानून के तहत बच्चा गोद लेने से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। उत्तराधिकार के मुद्दे पर भी विवाद है। इस्लाम के अनुसार, बेटी भाई की संपत्ति में आधे की हकदार है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इस प्रावधान को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।