इस मुस्लिम ने निभाया दोस्ती का फर्ज, हिंदू दोस्त का किया हिंदू रीति से अंतिम संस्कार और श्राद्ध कर्म
पश्चिम बंगाल में बर्दवान जिले के नर्स क्वार्टर में रहने वाले 30 साल के मिलन दास की मई 2018 में आकस्मिक मौत हो गई थी। पड़ोसी उसके अंतिम संस्कार के लिए परेशान थे क्योंकि मिलन दास का इस दुनिया में कोई परिवार नहीं था। लेकिन ऐसे मौके पर मिलन दास के सबसे करीबी दोस्त रबी शेख ने अपने दोस्त के क्रियाकर्म का फैसला किया। पहले तो लोग इस फैसले पर भौंचक रह गए क्योंकि रबी मुस्लिम था और मिलन के सारे क्रियाकर्म हिंदू रीति-रिवाज के आधार पर होने थे। लेकिन किसी ने भी इस मामले में रबी से पूछताछ नहीं की। रीति-रिवाज और परंपराओं को दरकिनार करते हुए रबी ने अपने दोस्त की मदद की लिए हाथ बढ़ा दिया था।
रबी ने अपने दोस्त मिलन के अंतिम संस्कार के हर कर्म को हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार संपन्न किया। उसकी मृत देह को आग देने के साथ ही उसके श्राद्ध कर्म तक का हर कर्म रबी ने पूरी श्रद्धा के साथ किया। इसने कई लोगों के दिल को छुआ और जल्दी ही ये खबर वायरल हो गई। रबी की आस्था से वह हिंदू पुरोहित भी बेहद प्रभावित हैं जिन्होंने मिलन का अंतिम संस्कार करवाया था। पुरोहित खुद को भाग्यशाली कहते हैं जो उन्हें ऐसी दोस्ती अपनी आंखों के सामने देखने का मौका मिला। पुजारी ने पत्रकारों से कहा,”मुझे आश्चर्य है कि मैं क्या फिर कभी इतना भाग्यशाली हो पाऊंगा। ये धार्मिक कट्टरताओं पर दोस्ती की जीत है।”
वहीं अपने दोस्त मिलन के देहांत के दुख से उबरने की कोशिश कर रहे रबी ने मीडिया को बताया,”हम बहुत अच्छे दोस्त थे। पिछले 10 सालों में शायद ही कोई ऐसा दिन आया जब हमारी मुलाकात नहीं हुई हो। उसका परिवार न होने के कारण उसका उचित अंतिम संस्कार होना कठिन था। लेकिन मैं ये कैसे होने देता? इसलिए मैंने पिछले 10 दिनों में अपने हिंदू दोस्त के लिए हिंदू कर्मकांड का हर वह कर्तव्य पूरा करने की कोशिश की है, जो मेरे दोस्त के परिवार वाले कर सकते थे।”
बताया गया कि मिलन की मौत 29 मई 2018 को हृदयगति रुक जाने के कारण हो गई थी। उसके परिवार का पता न लगा पाने के कारण पुलिस ने उसका अंतिम संस्कार बतौर लावारिस करने का फैसला किया। लेकिन मिलन के दोस्त रबी को ये मंजूर नहीं था। रबी ने कहा,”हमने 28 मई की रात में इस बारे में बात की। अगले दिन मैं काम से लौटा और सुना कि मेरा दोस्त मिलन नहीं रहा। मैंने कभी इस हादसे की कल्पना नहीं की थी।” इस घटना ने पिछले साल मालदा के शेखपुरा गांव में हुई अन्य घटना की याद दिलवा दी। इस घटना में अकेले रहने वाले 33 साल के विश्वजीत रजक की मौत पर मुस्लिम समुदाय ने हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक उसका अंतिम संस्कार किया था।