Mahalaya 2017:…तो इसलिए मनाई जाती है महालया अमावस्या, पौराणिक कथा है इसके पीछे

महालया एक संस्कृत शब्द है जिसमें महा का अर्थ होता है महान और आल्या का अर्थ है निवास। महालया अमावस्या दुर्गा पूजा या नवरात्र की शुरुआत को दर्शाता है। दुर्गा पूजा हिन्दूओं का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। महालया से ही नवरात्रों की शुरूआत हो जाती है। महालया अमावस्या की काली रात को मां दुर्गा की पूजा की जाती है और उनसे प्रार्थना की जाती है की वो धरती पर आएं और अपने भक्तों को आशीर्वाद दें। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां दुर्गा धरती पर आकर असुर शक्तियों से अपने बच्चों की रक्षा करती हैं। ये देवी पक्ष की शुरूआत के साथ पितृ पक्ष का अंत भी माना जाता है। इस वर्ष पितृ पक्ष 5 सितंबर से शुरू होकर 20 सितंबर को खत्म हो रहे हैं। दुर्गा पूजा की शुरूआत षष्ठी से होती है जो 26 सितंबर को है और 30 सितंबर विजय दशमी तक रहेगी।

महालया त्योहार ज्यादातर बंगालियों द्वारा मनाया जाता है। महालया नवरात्र या दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है। इसमें मां दुर्गा को उनके भक्तों की महिसासुर से रक्षा करने के लिए बुलाया जाता है। ये अमावस्या की काली रात को मनाया जाता है और भक्त मां से धरती पर आने की प्रार्थना करते हैं। मां कैलाश से अपने बच्चों के लिए धरती पर आती हैं। इसके बाद मां के आने का बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है। महालया से छठी के दिन पंडालों में बड़ा आयोजन किया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा का पूजन बहुत ही धूम-धाम से किया जाता है। इस दौरान सड़के सजती हैं और पंडालों में मां दुर्गा की मूर्त विराजमान की जाती हैं।

इस दिन सभी लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उन्हें भोजन अर्पित करते हैं। ये भोजन, कपड़े और मिठाई वो ब्राह्मण को खिलाते हैं। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठते हैं और अपना दिन देवी महामाया की मूर्त के आगे पूजा करते हैं। खाना और कपड़े पूजा मंडप में दान किए जाते हैं। पितरों के लिए भोजन चांदी या तांबे के बर्तन में बनाया जाता है। इसके बाद ये भोजन केले के पत्ते और सूखी पत्तियों से बने कटोरे में खिलाया जाता है। ज्यादातर खीर, चावल, दाल, गौर, और सीताफल ही भोजन में अर्पित किया जाता है।

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