प्रणब दा के भाषण से गदगद चिदंबरम, बोले- अपने अंदाज में कांग्रेस की विचारधारा बताकर अच्छा किया
पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुख्यालय में दिए गए भाषण पर खुशी जताई है और कहा है कि उन्होंने अपने अंदाज में संघ के लोगों को कांग्रेस की विचारधारा से अवगत कराकर अच्छा किया। चिदंबरम ने ट्वीट किया है, ‘खुश हूं कि श्री प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस को बताया कि कांग्रेस की विचारधारा में सही क्या है। यह उनके कहने का अपना तरीका था कि आरएसएस की विचारधारा में गलत क्या है।’ बता दें कि जब प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस के न्योते को स्वीकार कर लिया था और नागपुर जाने को तैयार हो गए थे, तब कांग्रेस के कई नेताओं ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। तब चिदंबरम ने लिखा था कि पूर्व राष्ट्रपति ने नागपुर जाने का अनुरोध स्वीकार कर ही लिया है तो उनसे अनुरोध करूंगा कि वह आरएसएस को बताएं कि उसकी विचारधारा में गलत क्या है।
बता दें कि कांग्रेस पार्टी और अपने परिजनों के विरोध के बावजूद पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को नागपुर के संघ मुख्यालय में हुए संघ शिक्षा कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत विविधताओं का देश है और विविधताओं के बीच एकता भारतीयता की पहचान रही है। उन्होंने कहा था कि राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता एक-दूसरे से गुथे हुए हैं। इन्हें अलग-अलग कर नहीं देखा जा सकता है। मुखर्जी ने कहा कि इस देश में इतनी विविधता है कि कई बार हैरानी होती है। यहां 122 भाषाएं हैं, 1600 से ज्यादा बोलियां हैं, सात मुख्य धर्म हैं और तीन जातीय समूह हैं लेकिन यही विविधता ही हमारी असली ताकत है। यह हमें पूरी दुनिया में विशिष्ट बनाता है।
संघ के भावी प्रचारकों को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने संघ के विचारों से उलट उन्हें सहनशीलता, सहिष्णुता और राष्ट्रीय अखंडता का पाठ पढ़ाया। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सबका विकास जरूरी है। प्रणब दा ने वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र दिया। उन्होंने कहा कि समाज और देश को आगे ले जाने के लिए बातचीत बहुत जरूरी है। बिना संवाद के लोकतंत्र नहीं चल सकता है। हमें बांटने वाले विचारों की पहचान करनी होगी। हो सकता है कि हम दूसरों से सहमत हों और नहीं भी हों लेकिन किसी भी सूरत में विचारों की विविधता और बहुलता को नहीं नकार सकते हैं।