काबिलेगौर: ‘सिर्फ विधानसभा में बहस करके नहीं मिल सकता पूर्ण राज्य का दर्जा’

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने को लेकर काफी समय से बहस चल रही है। जहां एक ओर आम आदमी पार्टी (आप) सरकार दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाए जाने की मांग पर अड़ी है, वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कहना है कि केवल विधानसभा में बहस और प्रस्ताव लाने से दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं बन सकती है, इसके लिए संसद को कानून बनाना होगा। उन्होंने कहा कि आप सरकार को यह वास्तविकता पता है कि देश की राजधानी दिल्ली को कोई भी केंद्र सरकार आसानी से पूर्ण राज्य बना कर अपनी कमान किसी और को नहीं सौंप सकती है। केजरीवाल सरकार तो काम न कर पाने का बहाना खोजती रहती है। कभी केंद्र, कभी उपराज्यपाल, तो कभी अफसरों पर काम न करने देने का आरोप लगाकर वह काम करने से बचना चाहती है।

संविधान के जानकार और दिल्ली विधानसभा के सचिव रहे एसके शर्मा का कहना है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाया ही नहीं जा सरकता है। यह तो संविधान तैयार करने वाले नेताओं ने ही तय कर दिया था कि दिल्ली केंद्र सरकार के अधीन ही रहेगी। लगातार दो दिन से विधानसभा में इस मुद्दे पर बहस करवा रहे आप के नेता तो हर मामले के लिए पूर्ण राज्य न होने का दोष देते हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आमतौर पर विधानसभा में नहीं आते हैं। उनके स्थान पर सदन की अगुआई करने वाले उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने तो यहां तक कह दिया कि अगर दिल्ली पूर्ण राज्य होती तो मेट्रो के किराए नहीं बढ़ते।

सभी को पता है कि दिल्ली मेट्रो केंद्र और दिल्ली सरकार की बराबर हिस्सेदारी और जापान से मिले सस्ते कर्ज से चलती है। इसी तरह की कई और बातें भी कही जा रही हैं, जिन पर सोमवार को बहस के बाद कोई प्रस्ताव पास होने वाला है। इसकी तैयारी के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को अपने विधायकों की बैठक बुलाई है। आप सरकार इससे पहले भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव पास कर चुकीहै। दिल्ली में रहीं भाजपा और कांग्रेस की सरकारें भी पहले इस तरह के प्रस्ताव ला चुकी हैं। शीला दीक्षित के तीसरे कार्यकाल में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने साफ कहा था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य नहीं दिया जा सकता है। केंद्र में अब तक ज्यादातर समय कांग्रेस की सरकार रही है। इसलिए भाजपा दिल्ली को पूर्ण राज्य का का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन करती रहती थी।

साल 1999 में केंद्र में भाजपा की अगुआई वाली और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी। तब कांग्रेस दिल्ली के पूर्ण दर्जे की मांग करने लगी। केंद्र की भाजपा सरकार अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में दिल्ली राज्य विधेयक, 2003 ले आई। लोकसभा भंग होने से यह विधेयक प्रवर समिति को भेजा गया और फिर वह ठंडे बस्ते में चला गया। उस विधेयक में नई दिल्ली नगर पालिका क्षेत्र (एनडीएमसी) को छोड़कर बाकी दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का प्रस्ताव था। हालांकि इस विधेयक में भी कई पेच थे, लेकिन उसमें कई और अधिकार विधानसभा को मिल रहे थे जो अब नहीं मिल रहे हैं। उन्हीं अधिकारों की बात अब मनीष सिसोदिया कर रहे हैं। लेकिन शायद उन्हें अंदाजा नहीं है कि हालात किस कदर बदल गए हैं। दिल्ली की मौजूदा सरकार के पास जो अधिकार हैं, उनका तो वह इस्तेमाल कर नहीं रही है, ऐसे में केंद्र सरकार उन्हें और अधिकार कैसे दे देगी?

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 2004 में केंद्र की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में दिल्ली के पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए प्रयास किया था। इसमें सफल न होने पर उन्होंने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और दिल्ली पुलिस को तीन हिस्सों में बांटकर यातायात पुलिस और थानों की पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन लाने का प्रयास किया, लेकिन उस प्रस्ताव को भी उनकी पार्टी की केंद्र सरकार ने नहीं स्वीकारा। शीला दीक्षित कहती हैं कि कोई भी केंद्र सरकार दिल्ली पर अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहती है। ऐसे में दिल्ली में काम कर रही विभिन्न एजंसियों में तालमेल बनाकर ही काम करना होगा। लेकिन मौजूदा सरकार को काम नहीं करना है, इसलिए वह कोई न कोई बहाना इससे बचने की फिराक में रहती है।

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