शुजात बुखारी की हत्या: दफ्तर से निकलते पत्रकार पर बंदूकधारियों ने ताबड़तोड़ बरसाईं गोलियां, सामने आईं संदिग्धों की तस्वीर
राइजिंग कश्मीर अखबार के एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की कुछ अज्ञात बंदूकधारियों ने गुरुवार शाम गोली मारकर हत्या कर दी। श्रीनगर के प्रेस एन्क्लेव स्थित दफ्तर से निकलते वक्त उन पर यह हमला हुआ। इस हमले में उनके निजी सुरक्षा कर्मी भी मारा गया। वारदात के बाद पुलिस ने संदिग्धों की तस्वीरें जारी की हैं। इसमें बजाज पल्सर मोटरसाइकिल पर तीन शख्स सवार दिखते थे। वे बोरे में कुछ छिपाए हुए नजर आते हैं। माना जा रहा है कि इसमें वे असलहे थे, जिनसे बुखारी की हत्या की गई। मोटरसाइकिल चलाने वाला हेलमेट पहने हुए है, जबकि बाकी दोनों सवारों ने नकाब से मुंह ढक रखा है। तस्वीर जारी करके कश्मीर जोन पुलिस ने आम जनता से संदिग्धों की पहचान करने में मदद मांगी।
General public is requested to identify the suspects in pictures involved in today’s terror attack at press enclave.#ShujaatBukhari @JmuKmrPolice @spvaid@DIGCKRSGR @PoliceSgr pic.twitter.com/3cXM0CC8BD
— Kashmir Zone Police (@KashmirPolice) June 14, 2018
वारदात गुरुवार शाम साढ़े 7 बजे के करीब शुजात बुखारी के दफ्तर के बाहर हुई। उन्हें नजदीक से गोली मारी गई। ईद से एक दिन पहले अंजाम दी गई इस वारदात से पूरा कश्मीर हैरान है। बुखारी उन चंद लोगों में से थे जिन्होंने रमजान में सुरक्षाकर्मियों के सिक्योरिटी ऑपरेशन बंद रखने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया था। डीजीपी एसपी वेद ने द इंडियन एक्सप्रेस से बताया, ‘उनकी गोली मारकर हत्या की गई। तीन से चार लोग थे।’ बता दें कि मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने कार में बैठ रहे बुखारी पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं और ईद की वजह से उमड़ी भीड़ का फायदा उठाकर फरार हो गए।
बुखारी 51 साल के थे। वह अपने पीछे पत्नी तहमीना, बेटे तहमीद और बेटी दुरिया को छोड़ गए हैं। शुजात के भाई बशारत बुखारी सीनियर पीडीपी नेता और महबूबा मुफ्ती सरकार में मंत्री हैं। बुखारी राइजिंग कश्मीर के अलावा उर्दू दैनिक अखबार बुलंद कश्मीर, उर्दू साप्ताहिक कश्मीर परचम आदि से भी जुड़े रहे। राइजिंग कश्मीर का एडिटर बनने से पहले वह द हिंदू अखबार के जम्मू-कश्मीर ब्यूरो चीफ थे। ऐसा पहली बार नहीं है, जब बुखारी पर ऐसा हमला हुआ हो। 2006 में बुखारी को श्रीनगर से कुछ अज्ञात बंदूकधारियों ने अगवा कर लिया था।
हालांकि, वह उनके चंगुल से भागने में कामयाब रहे थे। इस घटना के बाद उन्हें सरकार की ओर से सुरक्षा मुहैया कराई गई थी। यह घाटी में काफी अर्से बाद किसी पत्रकार की हत्या का मामला है। इसी जगह 2003 में परवेज मोहम्मद सुलतान की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वहीं, 2004 में जर्नलिस्ट से सामाजिक कार्यकर्ता बनीं असिया जिलानी की भी कुपवाड़ा में हुए लैंडमाइन ब्लास्ट में मौत हो गई थी।