घाटी में राजनीतिक समाधान का इंतजार नहीं : जेटली

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार कहा कि आत्मसमर्पण से इनकार करने वाले आतंकवादियों से निबटना ‘बल प्रयोग’ की नीति नहीं है बल्कि यह कानून व्यस्था का मुद्दा है। इसके लिए राजनीतिक समाधान का इंतजार नहीं किया जा सकता। जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लगाए जाने के बाद कांग्रेस के नेताओं ने आशंका प्रकट की है कि इससे कश्मीर समस्या से निबटने में ‘बल प्रयोग’ नीति की वापसी हो सकती है। इसी के उत्तर में केंद्रीय मंत्री ने यह बात कही।जेटली ने फेसबुक पर लिखा, ‘कभी-कभी हम उन मुहावरों में फंस जाते हैं जो हमने ही गढ़े हैं।

ऐसा ही एक मुहावरा है ‘कश्मीर में बल प्रयोग की नीति’। एक हत्यारे से निपटना भी कानून-व्यवस्था का मुद्दा है। इसके लिए राजनीतिक समाधान का इंतजार नहीं किया जा सकता।’ उन्होंने सवाल उठाया, ‘कोई भी फिदायीन मरने को तैयार रहता है। वह (लोगों को) मारना भी चाहता है। तो क्या उससे सत्याग्रह का प्रस्ताव देकर निपटा जा सकता है? जब वह हत्या करने आगे बढ़ रहा हो तो क्या सुरक्षा बलों को उससे यह कहना चाहिए कि वह मेज तक आए और उनके साथ बात करे?’

जेटली का बयान ऐसे समय में आया है जब कुछ ही दिन पहले भाजपा ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ अपना गठजोड़ तोड़ लिया, फलस्वरुप वहां सरकार गिर गई और राज्यपाल शासन लगा। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती महबूबा ने भी कहा था कि जम्मू कश्मीर में बल प्रयोग से बात नहीं बनेगी और सुलह ही राज्य में समस्याओं के हल का एकमात्र रास्ता है।उन्होंने कहा कि भारत की संप्रभुता और नागरिकों के जीने के अधिकार की रक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। जेटली ने अफसोस प्रकट किया कि वाम चरमपंथ विचारधारा के लोगों के वर्चस्व वाले प्रमुख मानवाधिकार संगठनों ने उन निर्दोष नागिरकों को मानवाधिकारों से वंचित किए जाने की चर्चा कभी नहीं की है, जो उनकी हिंसा के शिकार हैं। उन्होंने कहा कि भले ही कांग्रेस पार्टी ऐतिहासिक और वैचारिक दृष्टि से ऐसे मानवाधिकार संगठनों के विरुद्ध रही हो लेकिन राहुल गांधी के हृदय में उनके प्रति सहानुभूति अवश्य है। राहुल गांधी को जेएनयू और हैदराबाद में विघटनकारी नारे लगाने वालों का साथ देने में कोई पछतावा नहीं है।

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