बिहार एनडीए में बढ़ी तकरार, जेडीयू बोली- 2015 के आधार पर हो सीट बंटवारा

आगामी लोकसभा चुनावों में सीट बंटवारे को लेकर बिहार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में तकरार बढ़ गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने 2015 के विधान सभा चुनावों के नतीजों के आधार पर एनडीए की चार सहयोगी पार्टियों के बीच सीट बंटवारे को कहा है। जेडीयू ने विधानसभा चुनाव में भाजपा से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया था। भाजपा और उसकी दो सहयोगी पार्टियों- राम विलास पासवान की अगुवाई वाली लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाली रालोसपा- की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू की मांग पर सहमति के आसार नहीं के बराबर हैं।

जेडीयू नेताओं का दावा है कि 2015 का विधानसभा चुनाव राज्य में सबसे ताजा शक्ति परीक्षण था और आम चुनावों के लिए सीट बंटवारे में इसके नतीजों की अनदेखी नहीं की जा सकती। एनडीए के साझेदारों में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत अभी शुरू नहीं हुई है लेकिन जेडीयू पहले ही 25 सीटें मांग रही है। पिछले दिनों भी यह खबर आई थी कि जेडीयू ने बीजेपी को नसीहत दी थी कि वो 2019 को 2014 न समझने की भूल करे। जेडीयू के एक नेता ने नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर बताया कि बीजेपी को यह सुनिश्चित करने के लिए आगे आना चाहिए कि सीट बंटवारे पर फैसला जल्द हो ताकि चुनावों के वक्त कोई गंभीर मतभेद पैदा न हो।

साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 243 सदस्यों वाली विधानसभा में 71 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी ने 53 और लोजपा-रालोसपा ने दो- दो सीटें जीती थीं। उस वक्त जेडीयू, राजद एवं कांग्रेस की सहयोगी थी लेकिन पिछले साल वह इन दोनों पार्टियों से नाता तोड़कर एनडीए में शामिल हो गई और राज्य में भाजपा के साथ सरकार बना ली। भाजपा के एक नेता ने जेडीयू की दलील को ‘‘अवास्तविक’’ करार देते हुए कहा कि चुनावों से पहले विभिन्न पार्टियां ऐसी चाल चलती हैं।उन्होंने दावा किया कि 2015 में लालू प्रसाद की अगुवाई वाले राजद से गठबंधन के कारण जेडीयू को फायदा हुआ था और नीतीश की पार्टी की असल हैसियत का अंदाजा 2014 के लोकसभा चुनाव से लगाया जा सकता है जब वह अकेले दम पर लड़ी थी और उसे 40 में से महज दो सीटों पर जीत मिली थी। ज्यादातर सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।

साल 2014 के आम चुनावों में भाजपा को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 22 पर जीत मिली थी जबकि इसकी सहयोगी लोजपा और रालोसपा को क्रमश: छह और तीन सीटें मिली थीं। जेडीयू 2013 तक भाजपा की सहयोगी था। उस वक्त वह राज्य में निर्विवाद रूप से वरिष्ठ गठबंधन साझेदार थी और लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में वह हमेशा ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ती थी। लोकसभा चुनावों में जेडीयू 25 और भाजपा 15 सीटों पर चुनाव लड़ती थी। बहरहाल, 2014 में भाजपा की जोरदार जीत ने समीकरण बदल दिए हैं और राजग में अन्य पार्टियों के प्रवेश का मतलब है कि पुराने समीकरण अब प्रासंगिक नहीं रह गए।

 

 

 

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