भाजपा के लिए आसान नहीं होगा बिहार में सीटों का बंटवारा

भाजपा के लिए बिहार में गठबंधन के अपने सहयोगियों के बीच लोकसभा सीटों का बंटवारा आसान नहीं होगा। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश की अगुआई वाले जनता दल (एकी) का राजग में शामिल होना इस संकट का कारण है। नए सहयोगी के कारण पुराने सहयोगियों को दी गई सीटों में भी पार्टी कटौती करना चाहेगी। जद (एकी) के कुछ नेता पहले ही 2009 लोकसभा चुनाव के फार्मूले पर अमल की दुहाई दे चुके हैं। तब गठबंधन में जद (एकी) ने 25 और भाजपा ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार की चार सहयोगी पार्टियों में सीट बंटवारे के लिए जद (एकी) 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को आधार बनाना चाहता है। राजद के साथ मिलकर लड़ी जद (एकी) ने विधानसभा चुनाव में भाजपा से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया था।

हालांकि भाजपा और उसकी दो सहयोगी पार्टियों रामविलास पासवान की अगुआई वाली लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की अगुआई वाली रालोसपा की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई वाले जद (एकी) की मांग पर सहमति के आसार न के बराबर हैं। लेकिन जद (एकी) नेताओं का दावा है कि 2015 का विधानसभा चुनाव राज्य में सबसे ताजा शक्तिपरीक्षण था और आम चुनावों के लिए सीट बंटवारे में इसके नतीजों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। राजग के साझेदारों में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत औपचारिक रूप से अभी भले शुरू नहीं हुई हो लेकिन जद (एकी) के नेता चाहते हैं कि भाजपा को यह सुनिश्चित करने के लिए आगे आना चाहिए कि सीट बंटवारे पर फैसला जल्द हो ताकि चुनावों के वक्तकोई गंभीर मतभेद पैदा न हो। पिछले विधानसभा चुनाव में जद (एकी) को राज्य की 243 सीटों में से 71 सीटें हासिल हुई थीं जबकि भाजपा को 53 और लोजपा – रालोसपा को महज दो – दो सीटें मिली थीं।

उधर, भाजपा नेता जद (एकी) की दलील को अवास्तविक करार देते हुए चुनाव से पहले अपनाई जाने वाली सामान्य चाल ही बता रहे हैं। उनका दावा है कि 2015 में लालू प्रसाद की अगुआई वाले राजद से गठबंधन के कारण जद (एकी) को फायदा हुआ था और नीतीश की पार्टी की असल हैसियत का अंदाजा 2014 के लोकसभा चुनाव से लगाया जा सकता है। जब वह अकेले दम पर लड़ी थी और उसे 40 में से महज दो सीटों पर जीत मिली थी। ज्यादातर सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। 2014 के आम चुनावों में भाजपा को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 22 पर जीत मिली थी जबकि इसकी सहयोगी लोजपा को छह और रालोसपा को तीन सीटें मिली थीं। इन्हीं नतीजों ने समीकरण बदल दिए हैं और राजग में अन्य पार्टियों के प्रवेश का मतलब है कि पुराने समीकरण अब प्रासंगिक नहीं रह गए।

सीट बंटवारे को लेकर राजग के साझेदारों में अभी बातचीत शुरू नहीं हुई है, लेकिन जद (एकी) ने मोलभाव शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के नतीजे भाजपा के प्रतिकूल आने का जद (एकी) फायदा उठाने की फिराक में है। पार्टी को उम्मीद थी कि गठबंधन के बाद केंद्र की मोदी सरकार में उसे हिस्सेदारी मिलेगी। पर मंत्रिमंडल के पिछले फेरबदल के वक्त नीतीश कुमार भाजपा के निमंत्रण का इंतजार ही करते रह गए। सो अपनी अलग पहचान के लिए पार्टी दांवपेंच आजमा रही है। बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की नीतीश की मांग इसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।

जद (एकी) ने अरविंद केजरीवाल के धरने का समर्थन भी भाजपा पर दबाव बनाने की मंशा से ही किया होगा। इतना ही नहीं, पार्टी के नेताओं ने हाल में आयोजित योग दिवस समारोहों में भी हिस्सा नहीं लिया। अलबत्ता, पार्टी ने कहा कि वह इस साल के अंत में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगी। जद (एकी) ने अगले महीने दिल्ली में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है। जिसमें कई मुद्दों पर पार्टी अपना रुख साफ करेगी।

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