2002 Naroda Patiya case: तीन दोषियों को 10-10 साल की सजा, जनसंहार में मारे गए थे 97 लोग

गुजरात दंगे से जुड़े नरोदा पाटिया जनसंहार मामले में हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने तीन अभियुक्तों को 10-10 साल की कैद और एक-एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। हाई कोर्ट ने उमेश भरवाड़, पदमेंद्र सिंह राजपूत और राजकुमार चौमल को पहले ही दोषी करार दिया था। तीनों को पत्थरबाजी और आगजनी करने के मामले में दोषी ठहराया गया। इस मामले में हाई कोर्ट ने गुजरात की पूर्व मंत्री और भाजपा की पूर्व नेता माया कोडनानी को सभी आरोपों से बरी कर दिया था, जबकि बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी को दोषी ठहराने की निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में 28 फरवरी, 2002 को दंगा भड़क गया था। बड़ी तादाद में लोगों की भीड़ इलाके में इकट्ठा हो गई थी। उग्र भीड़ ने पत्थरबाजी के साथ आगजनी भी की थी। इस हिंसा में मुस्लिम समुदाय के 97 लोगों की मौत हो गई थी। अब 16 साल से भी ज्यादा समय के बाद इस मामले में हाई कोर्ट का फैसला सामने आया है।

गुजरात में वर्ष 2002 में दंगा भड़ गया था, जिसमें नरोदा पाटिया इलाके में हिंसा भड़क गई थी। बता दें कि 27 फरवरी, 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियों में आग लगा दी गई थी। इसमें दर्जनों कारसेवकों की झुलसकर मौत हो गई थी। इसके अगले दिन 28 फरवरी को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में भीषण हिंसा हुई थी। इस नरसंहार में 97 लोगों की मौत हो गई थी, जबिक 33 अन्य लोग घायल हुए थे। गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी पर दंगा भड़काने का आरोप लगाया गया था। इस वर्ष 20 अप्रैल को गुजरात हाई कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी करते हुए निर्दोष करार दिया था। नरोदा पाटिया कांड में सात साल बाद मुकदमा शुरू हुआ था। इसमें 62 लोगों को आरोपी बनाया गया था। बता दें कि सुनवाई के दौरान विजय शेट्टी नामक आरोपी की मौत हो गई थी। सुनवाई के दौरान 327 लोगों के बयान लिए गए थे। इसके तीन साल बाद वर्ष 2012 में विशेष अदालत ने बीजेपी विधायक और मंत्री माया कोडनानी, बाबू बजरंगी के अलावा 32 अन्य लोगों को दोषी करार दिया गया था। इसके आद अभियुक्तों ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने अगस्त 2017 में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस साल अप्रैल में कोडनानी को सबूतों के अभाव में जहां बरी कर दिया गया, वहीं बाबू बजरंगी आजीवन कारावास की सजा को कम कर 21 वर्ष कर दिया गया था।

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