इमरजेंसी को याद कर अरुण जेटली ने हिटलर से की इंदिरा गांधी की तुलना

केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली ने आपातकाल की बरसी पर पूर्व इंदिरा गांधी को याद किया है। अरुण जेटली ने सोशल मीडिया के जरिये पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर हमला किया है। 1975 में जब देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी उस वक्त अरुण जेटली छात्र नेता थे। अरुण जेटली ने कहा कि 25 और 26 जून की मध्यरात्रि को देश में आपातकाल लगा दिया गया, और लोगों के मौलिक अधिकार रद्द कर दिये गये। जेटली ने सिलसिलेवार ट्वीट में कांग्रेस औऱ इंदिरा गांधी पर हमला किया। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तुलना जर्मनी के तानाशाह हिटलर से की। जेटली ने अपने ट्वीट में लिखा, “हिटलर और श्रीमती गांधी दोनों ने कभी भी संविधान को रद्द नहीं किया। उन्होंने एक लोकतांत्रिक संविधान का इस्तेमाल गणतंत्र को तानाशाही में बदलने के लिए किया। हिटलर ने अधिकांश विपक्षी संसद के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया और अपनी अल्पसंख्यक सरकार को संसद में 2/3 बहुमत वाली सरकार में परिवर्तित कर दिया।

जेटली ने आगे लिखा, “जन प्रतिनिधित्व कानून में उन प्रावधानों को सम्मिलित करने के लिए पूर्ववर्ती संशोधन किया गया ताकि श्रीमती गांधी के अवैध चुनाव को कानून में बदलाव करके सही ठहराया जा सके। हिटलर के विपरीत, श्रीमती गांधी भारत को राजवंशों के लोकतंत्र में बदलने के लिए आगे बढ़ीं।” अरुण जेटली ने अपने ट्वीट में उस वक्त के प्रसिद्ध नारे “इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा” पर भी अपने राय दिये। उन्होंने कहा, “उस वक्त के कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने घोषणा की, इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा। जेल से इंदिरा गांधी को लिखे एक पत्र में जेपी ने कहा, “अपने आप को देश से तुलना मत कीजिए, भारत अविनाशी है, आप नहीं।”

भाजपा नेता ने कहा कि 42वें संशोधन के जरिए उच्च न्यायालयों के रिट पेटीशन जारी करने के अधिकार को कमजोर कर दिया गया। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इस शक्ति को संविधान की आत्मा करार दिया था। उन्होंने कहा, “इसके अलावा इंदिरा ने अनुच्छेद 368 में भी बदलाव किया था, ताकि संविधान में किए गए बदलाव की न्यायिक समीक्षा न की जा सके। ऐसी बहुत-सी चीजें थीं, जिसे हिटलर ने नहीं की, लेकिन गांधी ने की।” जेटली ने कहा, “उन्होंने संसदीय कार्यवाही के मीडिया में प्रकाशन पर भी रोक लगा दी। जिस कानून ने मीडिया को संसदीय कार्यवाही को प्रकाशित करने का अधिकार दिया, उसे फिरोज गांधी विधेयक के नाम से जाना जाता था।”

उन्होंने कहा, “गांधी ने संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम तक में बदलाव कर डाला था। संशोधन के जरिए प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।” उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान में किए गए संशोधनों को बाद में जनता पार्टी की सरकार ने रद्द कर दिया था।

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