पीएम नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना पर विधि एवं न्याय मंत्रालय ने उठाए सवाल, मांगी सलाह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की महत्वाकांक्षी योजना पर विधि एवं न्याय मंत्रालय ने ही सवाल उठाए हैं। मंत्रालय ने विधि आयोग से तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर सलाह मांगी है। मंत्रालय ने आयोग से पूछा कि सभी चुनाव एक साथ कराने से खर्च में कमी आएगी, क्या ऐसा करने से भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक तानेबाने को नुकसान पहुंचेगा और क्या आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य प्रभावित होते हैं? मंत्रालय ने इसको लेकर विस्तृत नोट तैयार किया है, जिसमें एक साथ चुनाव कराने के संभावित दुष्प्रभावों को रेखांकित किया गया है। अब इन मसलों पर विधि आयोग से जवाब मांगा गया है। बता दें कि लॉ कमीशन कानून से जुड़े मसलों पर सरकार को राय देता है और संभावित कदमों की सिफारिश करता है।
एक साथ चुनाव कराने से खर्च कम होने की दलील: एक साथ चुनाव कराने के पक्षधर इसके पीछे खर्च कम होने की दलील देते हैं। विधि एवं न्याय मंत्रालय ने आयोग से पूछा है कि देश भर में एक साथ चुनाव कराने से क्या वास्तव में खर्च में कमी आएगी? चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, साथ में चुनाव कराने की स्थिति में तकरीबन 23 लाख ईवीएम और 25 लाख वीवीपीएटी यूनिट की जरूरत पड़ेगी। इस तरह ईवीएम पर 4,600 करोड़ रुपये और वीवीपीएटी यूनिट पर तकरीबन 4,750 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इस तरह कुल मिलाकर 10,000 करोड़ का खर्चा आएगा। मंत्रालय ने लिखा, ‘मशीन की आयु सिर्फ 15 साल की होती है। सुरक्षा कारणों से इस अवधि के बाद ईवीएम को बदलना पड़ता है। ऐसे में सिर्फ ईवीएम/वीवीपीएटी पर ही हर 15 वर्षों में 10 हजार करोड़ का खर्च आएगा। एक साथ चुनाव कराने पर एक मशीन का 15 वर्षों में सिर्फ 3 बार इस्तेमाल हो सकेगा। मौजूदा समय में ईवीएम/वीवीपीएटी का लोकसभा और विधानसभा चुनावों के कारण कई बार इस्तेमाल होता है।’ मंत्रालय का कहना है कि सुरक्षाबलों की तैनाती पर भी खर्च आता है। कानून मंत्रालय ने विधि आयोग से पूछा कि इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए एक साथ चुनाव कराने से वास्तव में पैसों की बचत होगी या और ज्यादा खर्च होगा?
भारतीय लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक तो नहीं: मंत्रालय ने भारतीय लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए नियमित अंतराल पर चुनाव कराने की बात भी उठाई। मंत्रालय ने लिखा, ‘ऐसी धारणा है कि एक साथ चुनाव कराने से मतदाताओं के व्यवहार में बदलाव आता है और वोटर उसी पार्टी के पक्ष में मतदान कर सकता है, जिसके जीतने आसार ज्यादा हों। ऐसे में जिस पार्टी के पक्ष में हवा चलेगी, मतदाताओं के उसी दल के पक्ष में मतदान करने की संभावना रहेगी।’ मंत्रालय ने विधि आयोग से इस मसले पर भी जवाब मांगा है। हालांकि, कानून मंत्रालय आचार संहिता लागू होने से विकास कार्यों के प्रभावित होने की दलील से ज्यादा सहमत नहीं दिखता है। मंत्रालय का कहना है कि चुनाव तिथि की घोषणा के बाद सिफ नई घोषणाओं पर रोक लगती है, पहले से चली रही योजनाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। हालांकि, मंत्रालय ने इस मसले पर भी राय मांगी है।