कांग्रेसी नेता का दावा- नरसिम्हा राव का हुआ था अपमान, कांग्रेस कार्यालय में नहीं रखने दिया गया था पार्थिव शरीर

‘सर्वनाशे समुत्पन्ने ह्मर्धं त्यजति पण्डित:’ अर्थात जब सर्वनाश निकट आता है, तब बुद्धिमान मनुष्य अपने पास जो कुछ है उसका आधा गंवाने यानी की आधा बचाने का प्रयास करता है, ताकि उसी के बल फिर से पूरा हासिल किया जा सके। देश के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने संस्कृत के इस श्लोक का उद्धरण तब किया था जब देश की अर्थव्यवस्था को उदारीकरण के दौर में ले जाने के नरसिम्हा राव के फैसले पर संसद में बहस हो रही थी। कुछ दिन पहले कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक टीवी चर्चा के दौरान इस वाकये का जिक्र किया था। तब नरसिम्हा राव ने कहा था कि आप सभी मेरे ऊपर भारत की संप्रभुता को गिरवी रखने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है, मैंने कुछ गिरवी नहीं रखा है। संसद में अपने एक घंटे के जवाब के अंत में नरसिम्हा राव ने कहा कि लोग कह रहे हैं कि मैंने उदारीकरण कर दिया, वैश्वीकरण कर दिया, निजीकरण कर दिया, मैं इनमें से कुछ नहीं कर रहा हूं, मैं महाप्रस्थान कर रहा हूं।”

इस महाप्रस्थान का क्या अर्थ था, भारत ने अगले 10 से 20 सालों में ही इसकी अनुभूति कर ली। जब देश की अर्थव्यवस्था कुलाचें भरने लगी थी। अपने दूरदर्शी और साहसिक निर्णय से देश की अर्थव्यवस्था में नवजीन का संचार करने वाले उन्हीं नरसिम्हा राव की आज जयंती है। 28 जून 1921 को अविभाजित आंध्र प्रदेश (वर्तमान में तेलंगाना) में पामुलरापति वेंकट नरसिम्हा राव का जन्म हुआ था। वे 21 जून 1991 से लेकर 16 मई 1996 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। नरसिम्हा राव को भारत में नयी आर्थिक नीतियों का जनक कहा जाता है। जब 1991 में भारत के पास भुगतान का संकट आया तो उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था के लिए उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण के दरवाजे खोले।

कांग्रेस पार्टी ने आज उन्हें श्रद्धांजलि दी और लिखा, “भारत के नौवें प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के जन्मदिन पर आज हम उन्हें याद करते हैं, कठिन राजनीतिक और आर्थिक फैसले लेने के लिए उन्हें चाणक्य कहा जाता था।” हालांकि कहा जाता है कि जब नरसिम्हा राव जीवित थे उस वक्त गांधी परिवार से उनके रिश्ते तल्ख थे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री नटवर सिंह ने लिखा है कि सोनिया गांधी और नरसिम्हा राव के बीच तनावपूर्ण रिश्ते थे। नटवर सिंह लिखते हैं, “इसलिए सोनिया, जिनका राव से बढ़िया रिश्ता नहीं था, सरकार पर उंगली उठाई, राजीव गांधी हत्याकांड की जांच में हो रही देरी से नाराज सोनिया ने पूछा कि यदि पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या से जुड़ी जांच में इतनी देर हो रही है तो इंसाफ के लिए लड़ रहे एक आम आदमी का क्या हश्र होगा।”

तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व और राव के बीच तनावपूर्ण रिश्तों का असर पूर्व पीएम के निधन के बाद भी देखने को मिला। कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा के मुताबिक निधन के बाद पूर्व पीएम के पार्थिव शरीर को कांग्रेस दफ्तर के कम्पाउंड में नहीं ले जाने दिया गया। अपनी किताब Courage and Commitment में अल्वा लिखती हैं, “उनका शरीर एआईसीसी कैंपस में भी नहीं जाने दिया गया था, गेट के बाहर फुटपाथ पर गन कैरिज पार्क किया गया, जो भी मतभेद थे लेकिन वह प्रधान मंत्री थे, वह कांग्रेस अध्यक्ष रहे थे, वह मुख्यमंत्री थे, वह पार्टी के महासचिव थे। जब कोई आदमी मर जाता है तो आप उससे इस तरह से व्यवहार नहीं करते हैं।” राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा होती है नरसिम्हा राव नेहरु-गांधी परिवार पर कांग्रेस की अत्यधिक निर्भरता को पसंद नहीं करते थे। कई बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी उन्होंने अपनी इस नाराजगी को जाहिर किया था।

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