राजस्थान: अरबों रुपए खर्च करने के बाद भी सरकारी स्कूल नतीजों में फिसड्डी
राजस्थान के सरकारी स्कूलों पर अरबों रुपए का बजट खर्च होता है पर इनका परीक्षा परिणाम निजी स्कूलों के मुकाबले बेहद शर्मनाक रहता है। परीक्षा परिणामों से ही सरकारी स्कूलों की दशा का अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रदेश में दसवीं कक्षा के साल 2017 के नतीजे बेहद चिंताजनक रहे। इससे सबक लेकर भी सरकार अपने स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने की तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। राज्य के सरकारी स्कूलों के शानदार भवन, उच्च प्रशिक्षित शिक्षक और भारी भरकम बजट के बावजूद इनका दसवीं कक्षा का परिणाम खराब रहने से शिक्षा विशेषज्ञों की पेशानी पर चिंता की लकीरें हैं। इन सरकारी स्कूलों की निगरानी के लिए अधिकारियों की लंबी चौड़ी फौज भी तैनात है।
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के साल 2017 के दसवीं कक्षा के नतीजों की पड़ताल जब शिक्षा विभाग ने की तो राज्य के 1354 विद्यालय फिसड्डी साबित हुए। इन स्कूलों के पाठशाला प्रधानों को अब नोटिस देकर उनसे परीक्षा परिणामों के न्यूनतम रहने के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है। प्रदेश में सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूलों का परिणाम बेहतर रहने से अभिभावक अपने बच्चों का बड़ी संख्या में विद्यालय परिवर्तन भी करा रहे हैं। प्रदेश में सबसे खराब स्थिति पूर्व में शिक्षा मंत्री रहे और अब सरकार में गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया के गृह जिले उदयपुर की रही। उनके उदयपुर जिले के 127 स्कूल फिसड्डी साबित हुए।
इसी तरह से शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी के गृह जिले अजमेर के हाल भी खराब रहा और 49 स्कूलों का रिकॉर्ड खराब रहा। शिक्षा विभाग अब खराब नतीजे देने वाले स्कूलों के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की बात कर रहा है जो सिर्फ फौरी ही होगी और बाद में फिर से वहीं नकारात्मक रवैया सामने आएगा। परिणामों लगातार सरकारी स्कूलों के खराब रिकॉर्ड के चलते अब दसवीं कक्षा की योग्यता सूची भी जारी करनी भी बंद कर दी गई है। सरकारी स्कूलों की किरकिरी नहीं हो इसके चलते ही राज्य और जिला स्तर की योग्यता सूची जारी नहीं की जा रही है। इससे प्रदेश में दसवीं कक्षा के शीर्ष बच्चों के नाम भी सामने नहीं आ रहे हैं। राजस्थान प्रगतिशील शिक्षक संघ के रामेश्वर प्रसाद का कहना है कि सरकारी स्कूल के अध्यापक निश्चित तौर पर निजी स्कूलों के शिक्षकों से ज्यादा योग्य हैं। सरकारी शिक्षकों को सरकार अध्यापन के अलावा समय समय पर अन्य कामों में लगा देती है। इसके चलते वे विद्यार्थियों पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते है। उन्होंने मापदंड के हिसाब से परिणाम नहीं आने के लिए शिक्षकों के बजाए सरकार के प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया।
सरकारी स्कूलों में लगातार सुधार के प्रयास किए जा रहे है। पिछले तीन सालों में दसवीं कक्षा की पढ़ाई में गुणात्मक सुधार किया गया है। इसके चलते ही कमजोर रहने वाले विद्यार्थी अपेक्षित नतीजा नहीं दे पाए। शिक्षा विभाग खराब परिणाम देने वाले स्कूलों की अलग से निगरानी करेगा। -वासुदेव देवनानी, शिक्षा राज्य मंत्री, राजस्थान