संविधान पीठ से केजरीवाल को बड़ी राहत: दिल्ली में हर मामले में एलजी की अनुमति जरूरी नहीं
दिल्ली का असल बॉस कौन है, बुधवार (तीन जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई हुई। पांच जजों की संविधान पीठ ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि उप राज्यपाल के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं हैं। उन्हें राज्य की कैबिनेट और उसके मंत्रियों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। उन्हें प्रशासनिक काम-काज में बाधा नहीं पैदा करनी चाहिए। कोर्ट ने इसी के साथ यह भी साफ किया कि हर मामले में एलजी की अनुमति जरूरी नहीं है। वहीं, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना भी मुमकिन नहीं है। ऐसे में यह फैसला एलजी के लिए किसी झटके से कम नहीं माना जा रहा है।
आपको बता दें कि लंबे वक्त से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप राज्यपाल अनिल बैजल के बीच प्रशासनिक अधिकारों को लेकर वैचारिक लड़ाई चल रही थी। सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने इसी पर कहा, “केंद्र और राज्य के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते होने चाहिए। सभी की जिम्मेदारी है कि वे संविधान का पालन करें। संविधान के मुताबिक ही प्रशासनिक फैसले लिए जाने चाहिए, जबकि राज्यों के पास अपने अधिकार इस्तेमाल करने का हक है।”
फैसले के दौरान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा बोले, “उप राज्यपाल के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं है। वह कैबिनेट की सलाह से काम करें। कैबिनेट और उसके मंत्रियों के साथ मिलकर उन्हें जनता के लिए काम करना चाहिए। रोजमर्रा के कामों में इस तरह बाधा डालना ठीक बात नहीं है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि एलजी खुद से कोई फैसला नहीं ले सकते हैं, जब तक संविधान उन्हें उसकी मंजूरी न दे।
उन्होंने आगे यह भी कहा कि उप राज्यपाल हर मामले के लिए राष्ट्रपति को दखल देने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। कानून बनाना दिल्ली सरकार का काम है। वही राज्य का तंत्र चलाएगी। वहीं, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने के मसले पर उन्होंने स्पष्ट किया ऐसा संभव नहीं है। मुख्यमंत्री केजरीवाल का इस पर कहना है कि यह लोकतंत्र और दिल्ली की जनता के लिए बड़ी जीत है।
उधर, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि दिल्ली में एलजी की मनमानी नहीं चलेगी। अब उन्हें एलजी के पास फाइलें नहीं भेजनी पड़ेंगीं। कोर्ट का यह फैसला जनता के पक्ष में आया है। सीजेआई दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पांच जजों की बेंच में उनके अलावा जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खनवलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे। पीठ ने इससे पहले इस पूरे मसले पर पिछले साल छह दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र और उपराज्यपाल की तरफ से तर्क दिया गया था कि दिल्ली राज्य नहीं है, लिहाजा उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त हैं।
क्या है मामलाः सीएम केजरीवाल ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को इससे पहले चुनौती दी थी। कोर्ट ने उस पर कहा था एलजी ही दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं और कोई भी फैसला उनकी अनुमति के बगैर नहीं लिया जा सकता है। सीएम का तब आरोप था कि बैजल फैसले लेने में देरी करते हैं। वह चुनी हुई सरकार द्वारा भेजी गई फाइलों को आगे बढ़ाने में समय लगाते हैं।