नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- कोर्ट में दोषी पाए गए विधायकों-सांसदों की सदस्यता तत्काल रद्द होना जरूरी नहीं

सुप्रीम कोर्ट में नरेंद्र मोदी सरकार ने गुरुवार (20 सितंबर) को कहा कि जिन विधायकों और सांसदों को किसी आपराधिक मामले में अदालत द्वारा सजा हो जाती है उनकी सदस्यता तत्काल नहीं खत्म होनी चाहिए। केंद्र सरकार में हो रही सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि ऊपरी अदालत में सुनवाई का अधिकार होने के कारण दोषी पाए जाने पर विधायक या सांसद की सदस्यता तत्काल नहीं खत्म होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में लिली थॉमस बनाम केंद्र सरकार के मामले में फैसला दिया था कि सजा होते ही विधायक या संसद की सदस्यता चली जाएगी, हालांकि दोषी चाहे तो ऊपरी अदालत में जाकर स्थगन आदेश लेकर पद पर बना रह सकता है।

केंद्र सरकार की तरफ से केंद्रीय कानून मंत्रालय ने एक लिखित हलफनामे में अपना पक्ष रखा। गैर-सरकारी संगठन लोक प्रहरी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में शिकायत की है कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के कई कानून-निर्माता अदालत द्वारा दोषी पाए जाने के बावजूद अपने पदों पर बने हुए हैं। याचिका पर अपना पक्ष रखते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि इस याचिका को खारिज किया जाना चाहिए क्योंकि इसे दायर करने वालों के किसी भी मौलिक या कानूनी अधिकार का हनन नहीं हुआ है। केंद्र सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत से कहा कि याचिका दायर करने वाले के पास इस मामले में राहत मांगने का कोई भी संवैधानिक या मौलिक अधिकार नहीं है।

जन प्रतिनिधि अधिनियम के तहत किसी भी मामले में दोषी पाए जाने वाले विधायक या सांसद की सदस्यता खत्म होने के साथ सजा पूरे होने के छह साल बाद तक चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती है। साल 2013 में तत्कलीन कांग्रेस सरकार ने भी सर्वोच्च अदालत से ऊपरी अदालतों से फैसला न आ जाने तक सदस्यता न खत्म होने का आदेश देने की मांग की थी जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया था। अदालत ने साफ किया था कि ऊपरी अदालत में स्थगन आदेश पर फैसला होने तक सदस्यता बरकार रह सकती है लेकिन उसके बाद नहीं। बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में सीबीआई अदालत ने दोषी करार दिया था जिसके बाद उनकी संसद सदस्यता खत्म हो गई थी।

 

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