ईसाई बना दिए जाने की आशंका ने भी मंगल पांडे को बनाया विद्रोही! पढ़ें आजादी की पहली जंग छेड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी की कहानी
भारत की स्वाधीनता के अध्याय की इबारत सही मायने में सन 1857 में लिखी जानी शुरू हो गई थी लेकिन कहा जाता है कि अंगेजी हुकूमत के खिलाफ इस विद्रोह का बिगुल उन्हीं के एक अदने से सिपाही ने बजा दिया था। उस सिपाही की आभा ऐसी थी कि जब अग्रेजों ने उसे दबोचने के लिए बाकी सिपाहियों को ऑर्डर दिया तो सब पीछे हट गए और शहादत की बारी आई तो जल्लादों ने उसे फांसी देने से मना कर दिया। उस सिपाही में शायद भारतीयों को स्वाधीनता का योद्धा नजर आया। वह कोई और नहीं, उत्तर प्रदेश के बलिया के छोटे से गांव नगवा में एक सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में 1827 में जन्मे मंगल पांडे थे। आज (19 जुलाई) मंगल पांडे की जयंती है। पांडे 22 वर्ष की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में बतौर सिपाही भर्ती हो गए थे। वह ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। मंगल पांडे की स्मृति में भारत सरकार ने 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया। उनके जीवन पर फिल्में और नाटक बन चुके हैं। इतिहासकारों में मंगल पांडे के विद्रोह को लेकर अलग-अलग राय है।
इतिहासकारों में से किसी ने लिखा कि भारतीय सिपाहियों को बलपूर्वक ईसाई बनाए जाने और विरोध करने पर यूरोपीय सिपाहियों के द्वारा भारतीय सिपाहियों को मौत के घाट उतारे की अफवाहों ने मंगल पांडे को आतंकित कर दिया था और 29 मार्च 1857 को भांग के नशे में उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। कुछ इतिहासकार ने कहा कि विद्रोह की वजह वह एनफील्ड बंदूक बनी जिसमें कारतूस दांतों से काट कर भरना पड़ता था। सैनिकों को जब पता चला कि सीलन से बचाने के लिए कारतूस का बाहरी आवरण में गाय और सुअर की चर्बी से निर्मित है तो मंगल पांडे ने इसके खिलाफ आवाज उठा दी। अंग्रेजी इतिहासकार किम ए वैगनर ने अपनी किताब ‘द ग्रेट फियर ऑफ 1857 – रयूमर्स, कॉन्सपिरेसीज एंड मेकिंग ऑफ द इंडियन अपराइजिंग’ में लिखा, “सिपाहियों के मन में बैठे डर को जानते हुए मेजर जनरल जेबी हिअरसी ने यूरोपीय सैनिकों के द्वारा हिंदुस्तानी सिपाहियों पर हमला किए जाने की बात को अफवाह करार दिया था लेकिन बहुत संभव है कि हिअरसी ने सिपाहियों तक पहुंची अफवाहों की पुष्टि कर स्थिति को बिगाड़ दिया था। मेजर जनरल के भाषण से आतंकित होने वाले सिपाही 34वीं बंगाल नेटिव इंफेन्टरी के मंगल पांडे भी थे।”
ब्रिटिश इतिहासकार रोजी लिलवेलन जोन्स ने भी अपनी किताब “द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया 1857 – 58 अनटोल्ड स्टोरीज, इंडियन एंड ब्रिटिश” में कुछ ऐसी ही दलीलें पेश की हैं। इन इतिहकारों के मुताबिक मंगल पांडे ने सार्जेंट मेजर जेम्स ह्वीसन पर गोली चलाई लेकिन वह बच गया। इस घटना को हवलदार शेख पल्टू के हवाले से बताया गया है। संघर्ष के दौरान अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग मौके पर पहुंचा तो पांडे ने उस पर गोली दाग दी लेकिन निशाना चूक गया, बाग ने भी अपनी पिस्तौल से पांडे पर गोली चलाई, उसका निशाना भी नहीं लगा। अंग्रेज अफसरों ने सिपाहियों से मंगल पांडे को पकड़ने के लिए कहा तो सब पीछ हट गए। पल्टू ने पांडे पर काबू पाने की कोशिश की। जोन्स के मुताबिक पल्टू ने जब जमादार ईश्वरी पांडेय को मंगल पांडेय को पकड़ने के लिए चार सैनिकों को भेजने को कहा तो ईश्वरी प्रसाद ने पल्टू को बंदूक दिखाते हुए कहा कि अगर मंगल पांडेय को भागने नहीं देगा तो वह गोली मार देगा।
जोन्स के मुताबिक मंगल पांडेय ने अपने साथियों को अपशब्द कहे और कहा कि “तुम लोगों ने मुझे भड़का दिया और अब तुम मेरे साथ नहीं हो” और घुड़सवार समेत कई पैदल सैनिकों को अपनी ओर आता पांडे ने बंदूक की नाल अपने सीने में लगाकर पैर के अंगूठे से ट्रिगर दबा दिया था लेकिन वह बच गए थे। 8 अप्रैल, 1857 को स्थानीय जल्लादों के द्वारा मना करने पर कोलकाता के जल्लादों से पांडे को फांसी दिलाई गई।
मंगल पांडे के बाद ईश्वर प्रसाद को भी फांसी दे दी गई। मंगल पांडे के द्वारा लगायी गई विद्रोह की यह चिंगारी फिर बुझी नहीं। महीने भर बाद 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी और फिर देखते देखते इस आग ने पूरे उत्तर भारत को अपनी चपेट में ले लिया। कहा जाता है कि बगावत से सहमे अंग्रेजों ने 34,735 कानूनों को भारतीयों पर थोप दिया ताकि फिर कोई मंगल पांडे सरीखा सैनिक दोबारा सिर न उठा सके।