दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर पर फर्जी डिग्री मामले में आरोप गठित, चलेगा मुकदमा
दिल्ली सरकार के पूर्व कानून मंत्री व आप विधायक जितेंद्र सिंह तोमर की कथित एलएलबी की डिग्री मामले में दिल्ली के पटियाला हाउस के अतिरिक्त मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल ने आरोप गठित कर दिया। अब तोमर समेत मुंगेर के बीएनएस इंस्टीच्यूट आफ लीगल स्टडीज और तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के नौ अधिकारियों व कर्मचारियों पर मुकदमा चलेगा। जिसकी सुनवाई की पहली तारीख 27 अगस्त को तय की गई है। यह जानकारी दिल्ली के थाना हौजखास के एसएचओ सतिंदर सांगवान ने दी है। इन्होंने ही इस मामले को शुरू से और गहराई से जांच कर आरोप पत्र कोर्ट में दायर किया था। इनके मुताबिक 27 अगस्त से मुकदमे में गवाहों के बयान दर्ज होने शुरू हो जाएंगे। आरोप पत्र में जिन लोगों के नामों का जिक्र किया गया था वे सभी शनिवार 21 जुलाई को पाटियाला हाउस में मौजूद थे।
अदालत ने जिनके खिलाफ आरोप गठित किए है उनके नाम जितेंद्र सिंह तोमर , बड़े नारायण सिंह, डा. रजी अहमद, डा. राजेन्द्र सिंह ( इन तीनों के दस्तखत से ही तोमर को प्रोविजनल डिग्री जारी की गई थी), निरंजन शर्मा, दिनेश कुमार श्रीवास्तव , अनिल कुमार सिंह , जनार्दन प्रसाद और सदानंद राय है। इससे पहले तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय अपनी जरूरी प्रक्रिया मसलन आंतरिक जांच , परीक्षा बोर्ड , सीनेट , सिंडिकेट की बैठक और राजभवन बगैरह की अनुमति हासिल कर तोमर की कथित एलएलबी की डिग्री को रद्द कर चुका है। और फर्जी डिग्री हासिल करने के बाबत विश्वविद्यालय ने एफआईआर भी दर्ज कराई है। जिसमें तोमर जमानत पर है। यूं तोमर ने भी पटना उच्च न्यायालय में डिग्री रद्द करने के खिलाफ अपील दायर कर रखी है।
जिसमें इनका आरोप है कि बगैर मेरा पक्ष जाने विश्वविद्यालय ने एक तरफा कर्रवाई कर डिग्री रद्द कर दी। पटना हाईकोर्ट ने तोमर का पक्ष सुनने का आदेश विश्वविद्यालय के कुलसचिव को दिया। तोमर इनके सामने बीते महीने अपने पांच वकीलों के साथ भागलपुर पहुंचे थे। दरअसल , जितेंद्र सिंह तोमर की फर्जी डिग्री होने का खुलासा एक सूचना के अधिकार के तहत लखनऊ के अवध विश्वविद्यालय से मांगी गई जानकारी के जवाब से हुआ। इसमें विश्वविद्यालय ने साफ तौर से इंकार करते हुए कहा कि तोमर को स्नातक विज्ञान की डिग्री यहां से जारी नहीं हुई है। इसी आधार पर फरवरी 2015 को दिल्ली हाईकोर्ट में तोमर की डिग्री को चुनौती दी गई।
तोमर ने अवध विश्वविद्यालय की स्नातक डिग्री के आधार पर मुंगेर के विश्वनाथ सिंह इंस्टीच्यूट आफ लीगल स्टडीज में बतौर नियमित छात्र की हैसियत से दाखिला लिया था। यह तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के तहत आता है। दिलचस्प बात कि इनके यहां जमा किया माइग्रेशन सर्टिफिकेट भी आरोपपत्र में जाली करार दिया गया है। जो बुंदेलखंड विश्वविद्यालय का है। तोमर ने 1994-1998 सत्र का विद्यार्थी होने का दावा किया। कानून की परीक्षा इस सत्र में पास होने के बाद 15 सितंबर 2012 को विश्वविद्यालय ने डिग्री दी। इसी डिग्री पर उन्होंने वकालत करने का लाइसेंस लिया। जिसे इस मुकदमेंबाजी की वजह से बार काउंसिल ने लाइसेंस को निलंबित कर दिया। ऐसा सतिंदर सांगवान बताते है।
उसी दौरान कोर्ट ने भागलपुर विश्वविद्यालय से डिग्री के बाबत जानकारी मांगी थी। तो दिल्ली हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र दायर किया । जिसमें साफ लिखा कि निर्गत प्रिविजनल डिग्री संख्या 3687 दिनांक 29 जुलाई 1999 संजय कुमार चौधरी के नाम से है। जो मुंगेर के तारापुर के आरएस कालेज से राजनीति विज्ञान प्रतिष्ठा विषय के इम्तहान में सफल होने पर जारी की है।