दिल्ली: स्वास्थ्य विभाग में हजारों करोड़ का घोटाला! आउटसोर्स इंप्लॉई को नहीं मिल रहा ईपीएफ
दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग में हजारों करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया है। व्यापक पैमाने पर हुई यह अनियमितता आउटसोर्स या कांट्रेक्ट पर रखे गए कर्मचारियों से जुड़ा है। स्वास्थ्य विभाग में 15 हजार कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा गया है, लेकिन ठेकेदार पिछले 10 वर्षों से इन कर्मचारियों को ईपीएफ (इंप्लॉई प्रोविडेंट फंड), इंश्योरेंस और बोनस का लाभ नहीं दे रहा है। ‘डीएनए’ के अनुसार, कांट्रेक्टर ने इस तरह से हजारों करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता को अंजाम दिया है। दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले सभी 35 अस्पतालों में सुरक्षा, साफ-सफाई, डेटा इंट्री और ड्राइवर आदि मुहैया कराने की जिम्मेदारी एक निजी कांट्रेक्टर को सौंपी गई है। आंतरिक जांच में इस घोटाले का खुलासा किया गया है। इसमें कहा गया है, ‘तमाम दस्तावेज से मेडिकल सुपरीटेंडेंट्स और ठेकेदारों के बीच साठ-गांठ की बात सामने आई है। इसके जरिये हजारों करोड़ रुपये की लूट की गई। साथ ही कामगारों का शोषण भी किया गया। यहां तक कि ईसीएस (इलेक्ट्रॉनिक क्लियरेंस सर्विस) ने संविदा पर रखे गए कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी या वेतन भी नहीं दिया। दिल्ली सरकार के अस्पतालों में अधिकांश अस्पतालों में कार्यरत आउटसोर्स वर्कर्स को ईपीएफ/ईएसआई का भी लाभ नहीं दिया गया।’
कानून का खुलेआम उल्लंघन: जांच से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि अस्पतालों के कांट्रेक्टर और मुख्य नियोक्ताओं (मेडिकल सुपरीटेंडेंट) द्वारा कांट्रेक्ट लेबर एक्ट के प्रावधानों का खुलेआम उल्लंघन करने की भी बात सामने आई है। आंतरिक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ईपीएफ से जुड़े पासबुक की प्रति मुहैया कराने में दिल्ली के सभी अस्पतालों ने असमर्थता जताई है। जांच के दौरान अधिकांश अस्पतालों ने माना कि संविदा पर रखे गए कर्मचारियों को ईएसआई का कार्ड नहीं दिया गया।’ इस बाबत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पास शिकायत भेजी गई है। सीएम ने 10 मई को इसे संबंधित विभाग के पास भेजा था। सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल सरकार न्यूनतम वेतन पर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है। यह मामला फिलहाल लंबित है। हाई कोर्ट के फैसले के बाद ही इस मामले में कार्रवाई की संभावना है। बता दें कि स्थायी कर्मचारियों के अभाव में बड़ी संख्या में कांट्रेक्ट वर्कर्स की मदद ली जाती है। श्रम कानून के प्रावधानों के तहत इन्हें न्यूनतम सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं।